Tuesday, September 11, 2018

कड़कनाथ मुर्गीपालन


Krishi Vigyan Kendra Jhabua

Office Telephone No. 07392-244367 Email- kvk.jhabua@rvskvv.net

Kadaknath Birds/ Chicks


S.No.
Kadaknath
Rate/Nos
1
0 Day Old Chick
65/-
2
07 Day Old Chick
70/-
3
15 Day Old Chick
80/-
4
Young Hen Bird
500/-
5
Young Male Bird
800/-

Bank Details for Online/NEFT/RTGS amount Transfer

1
Bank Name
State Bank Of India
2
Account Number
30702878779
3
Account Name
RVSKVV, Jhabua
4
IFSC
SBIN0000396
5
Branch Address
SBI, Rajwada Chouk Jhabua (M.P.)

Note :  Amount should be deposited in above mentioned bank account only


Contect Person

  Dr. I.S. Tomar, Associate Director Research, Jhabua  Mobile No. 8989910003

Sh. D.R. Chouhan, Technical Officer ,  Mobile No. 9752976879


कड्कनाथ परिचय एवम जानकारी
झाबुआ मध्यप्रदेष का आदिवासी बाहुल्य जिला है। इस जिले की पहचान यहां पर पाई जाने वाली मुर्गी की प्रजाति कड़कनाथ के कारण पूरे देष में है। कड़कनाथ कुक्कुट आदिवासी बाहुल्य झाबुआ जिला ही नहीं अपितु मध्यप्रदेष राज्य का गौरव है तथा वर्तमान में कड़कनाथ पक्षी झाबुआ जिले की पहचान बना हुआ है कड़कनाथ की उत्पति झाबुआ जिले के कठ्ठिवाड़ा, अलीराजपुर के जंगलों में हुई है। क्षेत्रीय भाशा में कड़कनाथ को कालामासी भी कहा जाता है क्योंकि इसका माॅस, चोंच, कलंन्गी, जुबान, टांगे, नाखुन, चमड़ी इत्यादि काली होती है। जो कि मिलैनिन पिगमेंट की अधिकता के कारण होता है जिससे हदय व डायवटीज रोगियों के लिए उत्त्म आहार है। इसका माॅस स्वादिश्ट व आसानी से पचने वाला होता है इसकी इसी विषेशता के कारण बाजार में इसकी माॅग काफी होती है एवं काफी उची दरों पर विक्रय किया जाता है।

                कड़कनाथ की तीन प्रजातियाॅ (जेट ब्लैक, पैन्सिल्ड, गोल्डन) पाई जाती है। जिसमें से जेट ब्लैक प्रजाति सबसे अधिक मात्रा में एवं गोल्डन प्रजाति सबसे कम मात्रा में पाई जाती है, नर कड़कनाथ का औसतन वजन 1.80 से 2.00 किलोग्राम तक होता है, मादा कड़कनाथ का औसतन वजन 1.25 से 1.50 किलोग्राम तक होता है, कड़कनाथ मादा प्रतिवर्श 60 से 80अण्डे देती है, इनके अण्डे मध्यम प्रकार के हल्के भूरे गुलाबी रंग के व वजन में 30 से 35 ग्राम के होते है।

                यह प्रजाति अपने कालें मांस जो उच्च गुणवत्ता, स्वादिश्ट एवं औशधीय गुणवाला होने के कारण जानी जाती है। लेकिन धीरे धीरे इसकी संख्या में कमी एवं अनुवांषिक विकृति के कारण इसका अस्तित्व खतरे में है। कृशि विज्ञान केन्द्र, झाबुआ द्वारा इसके महत्व एवं विलुप्पता को देखते हुए राश्ट्रीय कृशि नवोन्मेशी परियोजना अन्तर्गत कड़कनाथ पालन को कृशकों के कृशि के साथ जीवन यापन का आधार बनाने हेतु कार्य येाजना को मुर्तरूप दिया।
कडकनाथ कुक्कुटों के आवास की संरचना एवं सिंद्वात-
  • मुर्गी आवास षहर या कस्बों से दूर होना चाहिए।
  • पानी एवं विद्युत की सही व्यवस्था होना चाहिए।
  • मुर्गी आवास पहाड़ी एवं निचले क्षेत्र में नही होना चाहिए।
  • मुर्गी आवास में आवष्यक है कि सूर्य का प्रकाष मिलता रहे, लेकिन यह भी अति आवष्यक है कि सूर्य का प्रकाष आवास के अन्दर सीधा प्रवेष न करें। इससे बचने के लिए आवास की लम्बाई पूर्व से पष्चिम दिषा में होना चाहिए।
  • मुर्गी आवास की उॅचाई 12 से 15 फिट तक होना चाहिए।
  • खिड़की से फर्ष तक की उॅचाई कम से कम 2 फिट होना चाहिए।
  • मुर्गी आवास की पैराफिट दीवार 1 से 1.5 फिट उॅची होना चाहिए।
  • मुर्गी आवास की चैड़ाई 20 से 25 फिट से अधिक नही होना चहिए।
  • मुर्गी आवास से गन्दे पानी की निकासी का अच्छा साधन होना चाहिए।
  • मुगी आवास के आसपास झाड़ पेड़ नही होना चाहिए।
कड़कनाथ कुक्कुट प्रंबधन -
                मुर्गी पालन में कुक्कुट प्रबंधन का बहुत महत्वपूर्ण योगदान होता है कुक्कुट व्यवसाय में लगभग 80प्रतिषत समस्यायें कुक्कुट प्रबंधन में की गई लापरवाही के कारण ही उत्पन्न होती है। अतः कड़कनाथ पालक को प्रबंधन के पूर्व जानकारी होनी चाहिए ताकि आर्थिक क्षति का सामना न करना पड़ें।

                ऐसा देखा गया है कि मुर्गी षेड़ में क्षमता से अधिक चूजों का पालन करते है, और जगह के अभाव के कारण बीमारियों की षुरूआत हो जाती है। जगह का अभाव होने पर सबसे पहले बुरादा गीला होता है। अमोनिया बनती है फिर सांस संबधी समस्या उत्पन्न होती है, ई. कोलाई बैक्टीरिया आती है, काक्सीडियोसिस परजीवी आती है, पीकिंग (नोचना) होती है। इस प्रकार कुक्कुट आवास बीमारियों का जनक बन जाता है।

                किसी भी मुर्गी पालक को ऐसे विकट समय का सामना न करना पड़े, इसलियें व्यवसाय में कदम रखने के पूर्व पूर्ण विष्वास के साथ जानकारी अर्जित कर लेना चाहिए।
कड़कनाथ चूजे आने के पूर्व की तैयारी -
  1. बुरादा, पंख आदि मुर्गी आवास से दूर फेंककर जला देना चाहिए।
  2. छत, फर्ष, दीवार आदि ब्रष या बाॅस की झाडू की सहायता से घिस-घिस कर साफ कर देना चाहिए। तत्पष्चात् निरमा या ब्लीचिंग पाउडर का घोल बनाकर फर्ष पर 24 घण्टे तक भरा रहने देना चाहिए।
  3. जाली दीवार आदि को फलेगमन की सहायता से निर्जमिकृत चाहिए।
  4. पूर्णरूप से धुलाई हो जाने के पष्चात् डिस्इफेक्टेन्ट दवा का छिड़काव करने से 24 घण्टे पष्चात् चूने में काॅपर सल्फेट के मिश्रण का उपयोग आवास की पुराई करने में करना चाहिए।
  5. पानी के टेंक, ड्रम इत्यादी को धोकर चूने से पुताई कर लेना चाहिए।
  6. दाने एवं पानी के बर्तन इत्यादि को भी डिस्इफेक्टेन्ट से साफ कर स्प्रे कर लेना चाहिए।
  7. चूजे आने के दो दिन पूर्व से लकड़ी का बुरादा छानकर 2इंच मोटा फर्ष पर बिछा लेना चाहिए एवं चिक मेज (मक्के का दलिया) लेकर रख लेना चाहिए।
  8. बुरादे के उपर पेपर (अखबार) बिछा लेना चाहिए।
  9. चूजे के आने के पूर्व ब्रूडर चालू कर देना चाहिए ताकि ब्रुडर गरम रहे एवं चूजों के अनुकुल तापमान तैयार हो सके।
  10. बुरादा बिछाने के पूर्व मुर्गी आवास के अन्दर सारे उपकरण रख कर परदे से आवास को बंद करके फयूमीगेषन या पोटेषियम परमेगनेट एवं फार्मलिन के मिश्रण से धुंआ करना चाहिए जिससे सूक्ष्म जीवाणुओं का विनाष हो सके ध्यान रहे कि फयूमीगेषन के 24 घण्टे बाद परदे खोलना चाहिए।
  11. गर्मी के दिनों में पतली सुतली के परदों का उपयोग करना चाहिए बरसात् के मौसम में प्लास्टिक के परदों एवं षीतकालीन मौसम में मोटे बोरे के परदों का उपयोग करना चाहिए।
  12. परदे हमेषा उपर से 1 फिट छोडकर बंद करना चाहिए कोषिष रहे कि ज्यादा से ज्यादा षुद्ध वायु चूजों को मिल सकें।
  13. फार्म की धुलाई, पुताई होने के बाद कम से कम 5-10दिन तक फार्म खाली रखना चाहिए।
कड़कनाथ चूजे के आने पर अवस्था -
  • यदि चूजे सुबह लाते है, तो चूजों को तुरन्त चिक बाक्स से अलग कर देना चाहिए दिन का समय चूजों को दाना एवं पानी पिलाने के हिसाब से अच्छा रहता है। यदि चूजों को षाम या रात में लाते है तो उस रात चूजों को चिक बाक्स में रहने देना चाहिए। यदि गर्मी के दिन हो तो चूजों को तुरन्त चिक बाक्स से अलग कर देना चाहिए।
  • चूजे के आने से पूर्व इलेक्ट्राल युक्त पानी या 8 से 10प्रतिषत षक्कर या गुड़ का पानी तैयार कर रख लेना चाहिए। 3-4 घण्टे पष्चात चिक मेज (मक्के का दलिया) पेपर के उपर बुरक (फैला) देना चाहिए चिक मेज से 8 से 10 किलो प्रति हजार चूजों के हिसाब से बुरकना चाहिए। कमजोर चूजों को हाथ से पकड़कर दाना एवं पानी देना चाहिए। यदि चूजे एकाएक दाना पानी लेना नही समझ पाते तो अभ्यास कराना नही भूलना चाहिए।
  • आवष्यक दवाइयों, का संग्रहण कर लेना चाहिए जैसे- विटामीन बी काम्पलेक्स, एडी 3 ईसी, एन्टीबायोटिक, प्रोबायोटिक्स इत्यादी।
  • पानी षुद्ध एवं स्वच्छ ही उपयोग में लेना चाहिए।
एक से सात दिन के कड़कनाथ चूजों का रखरखाव -
प्रथम दिन -
  1. ब्रुडर का तापमान 90॰ थ् से 96॰ थ् तक होना अतिआवष्यक है।
  2. चूजों को दाना खिलाने एवं पानी पिलाने का अभ्यास आवष्यक रूप से कराना चाहिए।
  3. पानी में इलेक्ट्राल 24 घण्टे तक से देना चाहिए, ई.केयर सी दिन में एक बार देना चाहिए।
  4. 8 से 10 किलों चिक मेज 1000 चूजों पर देना चाहिए। मात्र 24घण्टे तक से देना चाहिए। मात्र 24 घण्टों चिक मेज पेपर में बुरक देना चाहिए। इसके बाद टेª में या बेबी चिक फिड़र में फीड़िग कराना चाहिए।
  5. ध्यान रहे कि बुरादे के उपर बिछाये गये पेपर कम से कम 6दिन तक बिछे रहना चाहिए। यदि पेपर गीला होता है, या फट जाता है तो उसे बदल देना चाहिए।
  6. यदि चूजा प्रथम सप्ताह में खुले बुरादे में चलता है तो यह आवष्यक है कि आने वाले दिनों में ई.कोलाई या साॅस संबधी समस्या बनेंगी।


दूसरे दिन –
 चिक फीड़ (स्टार्टस मैस) चालू कर देना चाहिए एवं चुजों को देखें कि वे दाना व पानी सही मात्रा में ग्रहण करजे है या नहीं। पानी में इलेक्ट्राल, बी काम्पलेक्स, एडी 3ई.सी. एवं केयर सी देना चाहिए।

तीसरे दिन -
  1. विटामिन, प्रोबायोटिक्स, ई.केयर सी.दिन में एक बार पानी में देना चाहिए एवं एन्टीबायोटिक दवा हर पानी में देना चाहिए।
  2. पानी के बर्तन उपयुक्त मात्रा में होने चाहिए तथा पानी के बर्तन को उल्टे स्टेण्ड में लगाना चाहिए ताकि छोटे बड़े सभी चूजें भली भांति पानी पी सके।
चैथे दिन -
  1. विटामीन, प्रोबायोटिक्स का पानी दिन मंे एक बार एवं एन्टीबायोटिक दवा का पानी में हर पानी में देना चाहिए।
  2. ब्रूडर की थोड़ी सी उॅचाई बढ़ा देनी चाहिए। चिक गार्ड की चैड़ाई भी बढ़ा देनी चाहिए देखना चाहिए चूजें आराम से है या नही।
पांचवे दिन -
  1.  विटामीन, प्रोबायोटिक्स का पानी दिन में एक बार एवं एन्टीबायोटिक दवा हर बार पानी में देना चाहिए।
  2. पांचवे दिन यदि देखने में महसूस हो कि जगह की कमी हो रही तो चिक गार्ड मिलाकर एक कर देना चाहिए ताकि जगह की वृद्धि हो सके और चूजों को भी आराम मिल सके।
छटवे दिन -
  1. केवल विटामीन एवं प्रोबायोटिक्स का पानी देना चाहिए।
  2. पेेपर हटा देना चाहिए, पानी एवं दाने के बर्तन प्रति हजार चूजों पर 3.3 की मात्रा में लगाना चाहिए।
  3. बू्रडर की उॅचाई लगभग 1 फुट कर देनी चाहिए गर्मी के दिनों में चूजे बिना बू्रडर के पाले जा सकते है। प्रकाष के लिए मात्र बल्ब लटका देना चाहिए।
सातवें दिन -
  1. इलेक्ट्राल प्रत्येक बार पानी में देना चाहिए एवं ई.केयर सी दिन मेें एक बार देना चाहिए।
  2. लसोटा एफ-1आॅख या नाक में ड्रापर की सहायता से एक-एक बूंद देना चाहिए, टीकाकरण हमेषा ठण्डे मौसम में या रात के समय करना चाहिए ताकि चूजे तनाव मुक्त रह सकें।
कड़कनाथ चूजों में बू्रडिंग प्रंबधन -
                बू्रडिंग व्यवस्था चूजों के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण इकाई है। क्योंकि बू्रडिंग का सही प्रबंधन पहले दिन से लेकर 4-6सप्ताह तक की आयु तक में करना चाहिए। जब तक की चूजा अपने आप में सक्षम नही हो जाता है तब तक उन्हें सेयना (कठिन) होता है। यदि कुक्कुट पालक ब्रुडिंग के समय सही व्यवस्था नही कर पाता तो चूजों के मरने की संख्या प्रथम संख्या में ही 7 से 10 प्रतिषत हो जाती है।
ब्रूडर क्या है-
यह अधिकतर बाॅस की टोकनी या चद्दर कर बना होता है। जो चूजों को गर्मी प्रदान करता है, इन बू्रडरों में 100 से 200 वाॅट के बल्ब लगे रहते है जिनके जलने से गर्मी पैदा होती है जो चूजों के लिये ठण्ड के दिनों में आवष्यक है। बू्रडरों की उॅचाई प्रथम सप्ताह में 6 से 10इंच तक होनी चाहिए। स्थिति अनुसार उॅचाई घटाई एवं बढ़ाई जा सकती है।
चिक गार्ड –
यह चद्दर या कार्ड बोर्ड का बना होता है। इसकी उॅचाई लगभग 1 फिट से 1.5फिट तक होती है तथा पट्टी की लंबाई 8 फिट से 10फिट तक होती है। चिक गार्ड को बू्रडर से 25-30 इंच की दूरी से घेर देना चाहिए। वातावरण के मुताबिक इसकी उॅचाई घटाई एवं बढ़ाई जा सकती है। ब्रूडर के बाहर चिक गार्ड के अंदर दाने एवं पानी के बर्तन लगा देना चाहिए। 6 से 10 दिन के अंदर ब्रूडर की उॅचाई बढ़ा देना चाहिए एवं चिक गार्ड की आवष्यकता न हो तो निकालकर अलग कर देना चाहिए या दो चिक गार्ड मिलाकर एक कर देना चाहिए। गर्मी के दिनों में 1-2 वाट विद्युत की खपत प्रति चूजों पर होती है एक चिक गार्ड में ज्यादा से ज्यादा 250 से 300 चूजों की ब्रूडिंग की जा सकती है।
ब्रुडिंग तापमान –
सही तापमान बनाये रखने को ही ब्रुडिंग कहते है। अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए प्रथम सप्ताह में 35॰ ब से 37॰ ब  या 90॰ थ् से 95॰ थ् होना अति आवष्यक है। प्रथम सप्ताह के बाद प्रति सप्ताह 2.5॰ ब या 5॰ ब तापमान कम करते जाना चाहिए। अंतिम तापमान 21॰ ब से 23॰ ब या 65॰ थ् से 70॰ थ् तक होना चाहिए। सबसे अच्छा तरीका यह है कि चूजों की स्थिति (रहन-सहन) से तापमान का अदांज लगाना चाहिए यदि चिक गार्ड के अंदर स्वतंत्र रूप से विचरण कर रहें हो तो ऐसी स्थिति में यह समझना चाहिए कि तापमान चूजों के अनुकुल है।
कड़कनाथ चूजों के अनुकूल वातावरण कैसे ज्ञात करें-
  • कुक्कुट पालकों को मौसम के मुताबिक पूर्ण तैयारी कर लेनी चाहिए।
  • गर्मी के मौसम की तैयारी - गर्मी के दिनों में चूजों को गर्मी से बचाने के लिए कड़कनाथ पालक को पंखे लगाना चाहिए खिड़कियों में बोरे के पद एवं छत के ऊॅपर धान का पैरा बिछाना चाहिए।
  • षीतकालीन मौसम की तैयारी - चूजों को ठंड से बचाने के लिए गैस ब्रुडर, बास के टोकने के बू्रडर, चद्दर के बु्रडर, पेट्रोलियम गैस, सिंगड़ी, कोयला, लकड़ी के गिट्टे, हीटर इत्यादी तैयारी चूजे आने के पूर्व करके रखना चाहिए।
तापमान ज्ञात करने के नियम -
  • यदि चिक गार्ड के सारे चूजे बू्रडर के अंदर घुसकर बैठे हो तो इसका मतलब है कि चिकगार्ड एवं बू्रडर का तापमान चूजों के अनुकूल नही है। ऐसी स्थिति में बू्रडर के अन्दर का तापमान बढ़ा देना चाहिए।
  • यदि चूजे बू्रडर के अंदर नही बैठते है या चिक गार्ड के किनारे सट-सट के बैठते है तो इसका मतलब है कि बू्रडर आवष्यकता से अधिक गर्म हो रहा है। इस प्रकार की स्थिति में बू्रडर का तापमान कम कर देना चाहिए।
  • यदि चूजे चिक गार्ड में किसी भी एक दिषा में ढेर (झुंड) के रूप में बैठे रहते हो तो इसका मतलब यह होता है कि चिक हाउस के अंदर कही न कही से सीधी हवा प्रवेष हो रही है और इसका पता लगाकर सीधी हवा को बंद कर देना चाहिए।
  • यदि चिक गार्ड एवं बू्रडर के अंदर चूजे स्वछंद विचरण कर रहे हो तो इसका मतलब है कि बू्रडर के अंदर एवं बाहर का तापमान चूजों के अनुकूल है। ऐसी अवस्था कुछ भी परिवर्तन करने की आवष्यकता नही होती है।
कड़कनाथ चूजों में दाना एवं पानी देने का तरीका -
पानी देने का तरीका - पानी हमेषा साफ व ताजा पिलाना चाहिए। पानी देने से पूर्व पानी के बर्तन को हमेषा निरमा से स्वच्छ कर लेना चाहिए तत्पष्चात् बर्तन धूप में सुखाकर साफ कपडे़ से पोछकर फिर ताजा पानी लगाना चाहिए।

     पानी में विटामिन या कोई भी अन्य दवा देना हो तो, सुबह के समय पहले पानी में देना चाहिए। दवाईयाॅ पिलाने के लिए कम पानी का प्रयोग करना चाहिए। जिससे कि दवायुक्त पूरा पानी चूजे पी सके। दवायुक्त पानी समाप्त हो जाने के बाद सादा पानी लगा देना चाहिए।

दाना देने का तरीका - दाना देने से पूर्व दाने के बर्तनों की सफाई आवष्यक रूप से कर लेना चाहिए एवं दाना फीडरों मंे इतना भरना चाहिए कि दाना गिरने न पायें। दाना भरने के बर्तनों को सप्ताह में दो बार निरमा या ब्लीचिंग से अवष्य धोना चाहिए।

           प्रत्येक दो घण्टे में दाना डालना चाहिए या तो फीडरों में खाली हाथ चलाना चाहिए ताकि दाने में जो पावडर हो वह भी दाने के बड़े टुकड़ों के साथ उठता (खपत) जायंे क्योंकि दाने में जो पावडर होता है, आवष्यक तत्व उसी में अधिक मात्रा में पाये जाते है।
टीकाकरण
          टीकाकरण के द्वारा कड़कनाथ कुक्कुट में विशाणु जनित बीमारियों को रोका जाता हैं। क्योंकि विशाणु से होने वाली बिमारी एक बार यदि मुर्गियों में आ जाती हैं तब मुर्गियां मरने लगती है और उनका बचना ही मुष्किल या असम्भव हो जाता है। इसलिए विशाणु जनित बीमारियों के बचाव के लिए टीकाकरण ही एक मात्र उपाय है।
      मुर्गियों का टीकाकरण हमेषा नमी लिये हुये पावडर के रूप में षीषी में बंद आता है। जिसके साथ डायलूएन्ट (स्टाराइल पानी या अन्य माध्यम) अलग षीषी में आता है इन दोनों टीका एवं डायलूएन्ट को हमेषा रेफ्रिजरेटर में रखना चाहिए।
टीका एवं डायलूएन्ट मिलाने का तरीका -
  1. एक निर्जमीकृत ( स्ट्रेलाइज) सुई की सहायता से ठंडे डायलूएन्ट में से 5मि.ली. डायलूएन्ट टीका वाली षीषी में डालना चाहिए।
  2. टीका  डायलूएन्ट को धीरे-धीरे हिलाना चाहिए तथा जब तक टीका का पावडर एक पारदर्षी घोल न बन जायें।
  3. टीका को हमेषा मुर्गीयों की संख्या के हिसाब से खरीदना चाहिए जैसे यदि 500 चूजे है तो हमें 500डोज वाला टीका एवं डायलूएन्ट खरीदना चाहिए।
  4. इसके बाद घोल को निकालकर डायलूएन्ट षीषी में डाल देते है एवं बचे हुए डायलुएन्ट से टीका वाली षीषी को 2-3बार धोते है।
  5. इस प्रकार तैयार की गई टीका अच्छी तरह से मिलाकर उसे थर्मस या थर्माकोल बाक्स में रख लेना चाहिए। लेकिन थर्मस या थर्माकोल बाक्स में बर्फ आवष्यक रूप से होना चाहिए ताकि टीका हमेषा ठंडा बना रहे।
  6. जब टीका को ड्रापर में लेना हो टीका की षीषी को हमेषा हिलाना चाहिए एवं ड्रापर से कम-कम टीका करना चाहिए ताकि टीका जल्दी खत्म हो जायें एवं टीका गरम न होने पाए।
  7. अण्डादेय कड़कनाथ मुर्गीयों में टीकाकरण, डीविकिंग (चोंच काटना) एवं डीवर्मिग (कृमिविहिनीकरण का समय एवं तरीका)
टीकाकरण करने का तरीका -
1.आॅख या नाक ड्रापर विधि द्वारा -

                एक अच्छे ड्रापर की सहायता से 1बूंद टीका मुर्गी की आॅंख या नाक में डालना चाहिए, एवं मुर्गी को हाथ से तब तक नही छोड़ना चाहिए जब तक की बूॅद आॅंख या नाक के अंदर प्रवेष न कर जायें।

2. पीने के पानी की सहायता से टीकाकरण करना -
  • टीकाकरण करने से पूर्व मुर्गीयों को 1.5 से 2.5 घण्टे प्यासा रखना चाहिए। इसके लिये 1.5 से 2.5 घण्टे पूर्व पीने के पानी के सारे बर्तन हटा देना चाहिए।
  • हटाये हुए पानी के सारे बर्तनों को अच्छे से धो कर सुखा लेना चाहिए।
  • पीने वाला पानी षुद्ध होना चाहिए एवं उसे टीका एवं दूध पावडर के अलावा किसी भी प्रकार की अन्य दवाई का उपयोग नही करना चाहिए।
  • 6 ग्राम दूध पावडर प्रति लीटर षुद्ध पानी के हिसाब से मिलाना चाहिए।
  • पानी को बर्फ से ठंडा करना चाहिए लेकिन बर्फ को सीधे पानी में नही मिलाना चाहिए। बर्फ के छोटे-छोटे टुकड़े बनाकर पालीथिन में भर लेना चाहिए और बर्फ भरी पालीथिन को टीकाकरण वाले षुद्ध पानी मंे हिलाते रहना चाहिए ताकि पानी ठंडा हो जाये। जब पानी ठंडा हो जाये तब पालीथिन निकालकर अलग कर देना चाहिए। यदि बर्फ बोरिंग या कुॅए के पानी का हो तो और कड़कनाथ पालक को पूरा विष्वास हो कि बर्फ में कोई दवा नही मिली है। तो ऐसी बर्फ का उपयोग टीकाकरण पानी में डालकर पानी को ठंडा करने में किया जा सकता है।
  • जब पानी ठंडा हो जाये तब टीके़ डायलूएण्ट को दूधयुक्त पानी में मिलाना चाहिए।
  • अब तैयार टीके युक्त पानी को अधिक से अधिक बर्तनों में कम से कम पानी की मात्रा में डालकर मुर्गीयों को पिलाना चाहिए। इससे बचने के लिए कमजोर व सुस्त चूजों कोे पकड़कर टीका युक्त पानी पिलाना चाहिए।
  • टीका युक्त पानी एक निष्चित मात्रा में लगाना चाहिए ताकि मुर्गीयां 1 घण्टे के आसपास पानी को खत्म कर सकें।
  • टीकाकरण करने के लिए टीके युक्त पानी की मात्रा इस प्रकार होनी चाहिए।
                1. 7 दिन की आयु के प्रति 1000चूजों के लिए 7 लीटर

                2. 15 दिन की आयु के प्रति 1000चूजों के लिए 15 लीटर

                3. 25 दिन की आयु के प्रति 1000चूजों के लिए 25 लीटर
सावधानियाॅं -
  1. टीकाकरण करने के लिए जो पानी उपयोग में लाया जाये वह ताजा, स्वच्छ,
  2. पक्षियों को कम से कम 1-2 घण्टे प्यासे रखना चाहिए। प्यासे रखने के दौरान दाना आवष्यक रूप से डालना चाहिए, ताकि पानी की तड़प बनी रहे।
  3. फेट (वसा) रहित (स्कीम्ड) दूध पावडर ही उपयोग करना चाहिए। सादे दूध का प्रयोग कतई नही करना चाहिए।
  4. टीकाकरण हमेषा ठंडे पानी में करना चाहिए एवं ठंडे मौसम में करना चहिए। टीकाकरण का उपयुक्त समय रात में या सबेरे धूप निकलने से पहले का समय होता है।
  5. ध्यान रहे एक भी पक्षी बिना टीकाकरण के नही छूटना चाहिए अन्यथा टीकाकरण रहित पक्षी के द्वारा वह बीमारी अन्य पक्षियों में प्रवेष कर सकती है और उस बीमारी का प्रभाव मुर्गिघर में हमेषा बना रहेगा।
  6. टीका खरीदते समय इसकी एक्सपाइर तिथि आवष्यक रूप से देख लेनी चाहिए।
  7. यदि मुर्गो में काक्सीडियोसिस की बीमारी आ गई है तब इस समय हमें टीकाकरण नही करना चाहिए क्योंकि काक्सी टीकाकरण में अवरोध पैदा करती है।
अण्डादेय मुर्गीयों में डीविकिंग (चोंच कटाई) -
                अण्डादेय मुर्गीयों में डीविकिंग एक महत्वपूर्ण कार्य है। जिससे मुर्गीयों को सबसे अधिक तनाव पड़ता है। इस कार्य में यदि सावधानी नही बरती जाये तो उत्पादन क्षमता में बुरा पड़ सकता है।
ध्यान रखने योग्य बातें -
  • चोंच का कटाव सही होना चाहिए ताकि भविश्य में चोंच अधिक न बढ़ सकें।
  • यदि चोंच जल्दबाजी में काटी गई है तो जल्दी बढ़ जाती है। और पिकिंग (मुर्गा में चोंच के द्वारा एक दूसरे को नोंचना) होने की पूरी संभावना बन जाती है, एवं मुर्गियों को सन्तुलित आहार ग्रहण करने में परेषानियों का सामना करना पड़ता है।जिससे मुगियों के षारीरिक भार में भिन्नता आ जाती है।
डीविकिंग (चोंच काटना) करने की विधि -
1. चिंक डीविकिंग या पहली डिविकिंग- यह अण्डादेय चूजों में 7 दिन से लेकर चैथे सप्ताह के अंदर कर देना चाहिए। यह अत्याधिक संवेदनषील होता है। इसमें चूजों को दोनों (उपर तथा नीचे) चोंचों को एक साथ मिलाकर काटा जाता है। इस विधि में डीविकिंग मषीन की ब्लेड लाल होने पर ही चोंच काटना चाहिए ताकि चोंच काटने में षीघ्रता हो और चूजों को परेषानी न हो चोंच के कटते ही चोंच को गरम ब्लेड़ में घिसकर जला देना चाहिए ताकि चोंच को सही आकार मिल सकें। चोंच को कम से कम दो सेकेंड तक ब्लेड के संपर्क में रखते हुए उसकी घिसाई करनी चाहिए। डीविकिंग के लिए चूजों को पकड़ते समय अंगूठा चूजे के सिर पर होना चाहिए चारों उंगलियां गर्दन के निचले भाग में होनी चाहिए डीविकिंग करते समय जीभ कटने की संभावना होती है इसलिए गर्दन के निचले भाग में साधारण दबाव देना चाहिए जिससे की जीभ अंदर की तरफ सुरक्षित आ सके।

2. फाइनल या आखिरी डीविकिंग - यह 16 वें सप्ताह की आयु में करनी चाहिए। इस डीविकिंग में पक्षी को सबसे अधिक तनाव का सामना करना पड़ता है। और यदि अच्छे से नही किया गया तो चोंच से अधिक खून बहने से पक्षी की मौत भी हो सकती है।
  • ब्लेड़ (लाल) गरम होना चाहिए। संभव हो तो नयी ब्लेड का इस्तेमाल करना चाहिएं।
  • दोनों चोंचो को अलग-अलग करके काटना चाहिए।
  • चोंच को अंगे्रजी के व्ही (ट) वर्णाकार में काटना चाहिए चोंच का निचला भाग उपरी भाग से लम्बा होना चाहिए।
  • डीविकिंग के लिए प्रयास करना चाहिए कि 16 वें सप्ताह में हो ही जाए, क्योंकि डीविकिंग का दिन पक्षियों के जीवनकाल का सबसे अधिक तनाव वाला दिन होता है और यदि 16 वें सप्ताह के बाद डीविकिंग करते है तो इसका गहरा असर अण्डों के उत्पादन पर पड़ता है। अतः डीविकिंग उचित समय पर होना ही चहिए।
  • पक्षियों को डीविकिंग के लिए पहले से तैयार करना चाहिए, इसके लिए विटामीन, इलेक्ट्राल आदि 3दिन पूर्व से 3 दिन बाद तक देना चहिए।
  • खून के बहाव को रोकने के लिए पहले से एवं 2 दिन बाद तक विटामीन‘के तथा विटामीन-सी पीने के पानी में देना चाहिए।
कड़कनाथ कुक्कुट आहार -
  • मुर्गी पालन में 70 प्रतिषत खर्चा कुक्कुट दाने पर होता है।
  • मुर्गी को सदैव ताजा, षुद्ध, संतुलित आहार देना चाहिए।
  • उम्र के आधार पर विभिन्न तैयार आहार बाजार से खरीदकर या घर पर बनाकर खिलाये जा सकते है।
  • कुक्कुट आहार सदैव नमी रहीत जगह पर रखना चाहिए। अन्यथा दाने में फंफुद लग सकती है। जिससे मुर्गियों में बीमारी की आषंका बनी रहती है।
  • अधिक दिनों तक कुक्कुट दिन भर में लगभग 100-120 ग्राम दाना रोज खा लेती है।
  • कुक्कुट आहार मुख्य रूप से मक्का, सोयाबीन की खली, चावल की चोकर एवं प्रीमिक्स से मिलकर बना होता है। इनमें से प्रीमियम के अलावा सभी चीजें किसान अपने खेत में उगाये गये उत्पाद जैसे मक्का, सोयाबीन व अन्य फसल उत्पाद सारणी में बताये अनुसार उपयोग कर सकता है। इससे किसानों को कुक्कुट आहारके परिवहन का खर्चा भी बच जायेंगा।
माॅस हेतू कड़कनाथ मुर्गो के लिए दाने के प्रकार -
कड़कनाथ मुर्गो को मुख्यतः दो प्रकार का दाना दिया जाता है-
  1. स्टार्टर मेस - इस प्रकार के दाने में चूजों की आवष्यकतानुसार प्रोटीन एवं उर्जा बराबर मात्रा में दी जाती है। इस प्रकार के दाने को देने की निर्धारित अवधि 300.00 ग्राम वजन तक मानी जाती है।
  2. फिनिशर मेस - इसको 300 ग्राम भार से चालू करना चाहिए एवं अंतिम अवस्था तक चालू रखना चाहिए। इस दाने में उर्जा एवं प्रोटीन का प्रतिषत क्रमषः 60 एवं 40 प्रतिषत होता है।
कड़कनाथ कुक्कुट पालन हेतु मौसम अनुसार प्रबंधन -
1. वर्षा के मौसम में प्रबंधन -

                हमारे देष में बरसात हमेषा जून से सितम्बर माह तक रहती है। इस मौसम में बीमारियाॅ बड़ी आसानी से फेलती है, क्योंकि इस मौसम में नमी बनी रहती है और सूर्य की रोषनी कुक्कट फाॅर्म में कम ही आ पाती है बरसात के दिनों में सबसे अधिक परेषानी ई.कोलाई नामक बीमारी से होती है और इन बीमारियों का मुख्य श्रोत कुंआ या नल होता है इससे बचने के लिए हमेषा डिस्इफेक्टेन्ट दवाई जैसे ब्लीचिंग पावडर 6-10ग्राम 1000 ली.पानी का उपयोग करना चाहिए।
  • पानी के टेंक को हमेषा साफ रखना चाहिए, महिने में कम से कम एक बार चूने से पुताई करनी चाहिए।
  • मुर्गी के दाने में एसीडिफाइर्स का उपयोग करना चाहिए।
  • मुर्गी आवास को हमेषा साफ-सुथरा रखना चाहिए जिससे मक्खियों का प्रवेष न हो सके।
  • वर्शा के दिनों में दूसरी बड़ी समस्या फंगस (फंफुद) की होती है जो कि बड़ी तीव्रता से मुर्गी के दाने में फेलती है।
  • यदि मुर्गी दाने में थोड़ी सी नमी आ जाती है तो इसमें फुुंद बड़ी त्रीवता से फेल जाती है।
इससे बचने के लिए हमें निम्न उपाय करने चाहिए -
  1. अच्छे एवं ताजे आहार का प्रयोग करना चाहिए।
  2. टाॅक्सिन वाईन्डर दवा आहार में आवष्यक रूप से देनी चाहिए।
  3. आहार का स्टाॅक लकड़ी के तख्ते पर करना चाहिए एवं दीवाल से एक इंच की दूरी पर रखना चाहिए, एवं स्आक आहार को हमेषा सूर्य का प्रकाष मिलता रहना चाहिए।
  4. .कुक्कट आहार हेतु जो भी कच्चा माल खरीदना हो वह सूखा होना चाहिए ।
  5. यदि दाने (आहार) में फुुंद आ गई है तो ऐसे आहार में ढेले बनने लगते है, इस आहार को हमें मुर्गियां को नही देना चाहिए, इसके लिए आहार को तेज धूप में सुखाकर ढेलों को फोड़ देना चाहिए इस सूखे हुए आहार में टाॅक्सिन वाईन्डर दवा, काॅपर सल्फेट माइक्रोसार्व मिलाकर मुर्गियों को देना चाहिए।
  6. यदि मुर्गियों ने फुंुद युक्त आहार खा लिया हो तो इस स्थिति में मुर्गियों पतली बीट करने लगती है क्योंकि फंफुद मुगियों के यकृत (लीवर) को खराब कर देती है, ऐसी स्थिति में हमें मुर्गिया के पीने के पानी में लीवर टोनिक दवाई देना चाहिए एवं टाॅक्सिन वाईन्डर दवा का उपयोग करना चाहिए।
  7. वर्शा के दिनोें में मुर्गियों में निम्न बीमारियाॅ अक्सर देखी जाती है - जैसे - ई.कोलाई, डर्माटाईटिस, नेक्रेटिक, एनट्राईटिस, हिपेटाइटिस, काक्सीडियोसिस एवं फंगस टाॅक्सिसिटी इत्यादि।
2. शीतकालीन मौसम में कड़कनाथ कुक्कुट का आवास का प्रबंधन -
मुर्गी आवास की सफाई हेतु -
  1. पुराना बुरादा, पुराने बोरे, पुराना आहार एवं पुराने खराब पर्दे इत्यादि अलग कर देना चाहिए या जला देना चाहिए।
  2. वर्शा का पानी यदि आवास के आसपास इक्कठा हो तो ऐसे पानी को निकाल देना चाहिए और उस जगह पर ब्लीचिंग पावडर या चूना का बुरकावा कर देना चाहिए।
  3. फार्म के चारों तरफ उगी घास, झाड़, पेड़ आदि को नश्ट कर देना चाहिए।
  4. दाना गोदाम की सफाई करनी चाहिए एवं काॅपर सल्फेट युक्त चूने के घोल से पुताई कर देनी चाहिए ऐसा करने से फफंुद का प्रवेष भी ब्लीचिंग पावडर से कर लेना चाहिए।
  5. कुंआ, दिवार आदि की सफाई भी ब्लीचिंग पावडर से कर लेना चाहिए।
श्ज्ञीतकालीन मौसम में दाने एवं पानी की खपत -
                षीतकालीन मौसम में दाने की खपत बढ़ जाती है यदि दाने की खपत बढ़ जाती है तो इसका मतलब है कि मुर्गियों में किसी बीमारी का प्रकोप चल रहा है। षीतकालीन मौसम में मुर्गिया के पास दाना हर समय उपलब्ध रहना चाहिए।

                षीतकालीन मौसम में पानी की खपत बहुत ही कम हो जाती है क्योंकि इस मौसम में पानी हमेषा ठंडा ही बना रहता है इसलिए कड़कनाथ इसे कम मात्रा मंे पी पाते है। इस स्थिति से बचने के लिए मुर्गियां को बार-बार षुद्ध ताजा पानी बदलकर देते रहना चाहिए।
      ठंड के दिनों में मुर्गि आवास को गरम रखने के लिए कुक्कुट पालक को पहले से सावधान हो जाना चाहिए क्योंकि जब तापमान 10॰ब से कम हो जाता है तब आवास के षीषे से ओस की बूंद टपकती है इससे बचने के लिए कुक्कुट पालक को मजबुत ब्रुडिंग कराना तो आवष्यक है ही साथ ही मुर्गी आवास के उपर पैरा या बोरे, फट्टी आदि बिछा देना चाहिए एवं साइड के पर्दे मोटे बोरे के लगाना चाहिए, ताकि वे ठंडी हवा के प्रभाव को रोक सकें।
3. गर्मी के मौसम में प्रबंधन -
  1. गर्मी के दिनों में निम्नलिखित समस्या प्रभावित करती है -
  2. गर्मी की अधिकता के कारण दाने की खपत में कमी ।
  3. दाने की खपत कम होने के कारण उत्पादन में कमी।
  4. हीट स्ट्रोट (गरमी) के कारण मुर्गीयों का मर जाना।
  5. मुर्गीयों का वजन कम होना।
                गर्मी के दिनों में मुर्गी आवास एंक बंद संदुकनुमा हो जाता है, जिसके उपर गर्म छत, दीवाल, गर्म हवायें एवं पर्दे से बंद खिड़कियां ऐसी स्थिति में आवास के अंदर इतनी भयानक गर्मी होती है कि मुर्गीयां इस गर्मी को सहने में असमर्थ रहती है कड़कनाथ पालक को इससे निपटना बहुत मुष्किल पडता है इसके लिए कड़कनाथ पालक को निम्न उपाय करना चाहिए -
  • परदों को पूरा बंद नही करना चाहिए, परदों को इतना बंद करें कि मुर्गी आवास मंे मुर्गीयों को सीधे लू न लगे।
  • परदा बंद करने का उदेष्य सिर्फ इतना होना चाहिए कि पक्षियों को लू से बचाया जा सके एवं ठंडी हवा का प्रवाह बना रहें।
  • यदि आप मुर्गी आवास के अंदर हो और आप के वातावरण में आराम महसूस कर रहें हो तो यह वातावरण मुगीयों के लिए अनुकुल है।
  • मुर्गीयों में गर्मी का प्रभाव सुबह 11 बजे से रात 9-10बजे तक अधिक पड़ता है एवं दाना खाने के बाद गर्मी का असर और बढ़ जाता है।
  • पानी गर्मी के दिनों में ठंडा मिलना चाहिए, हो सके तो दिन के हर पानी में इलेक्ट्राल का उपयोग करना चाहिए।
  • गर्मी के मौसम में दिन के समय दाना कम व पानी ज्यादा पिलाना चाहिए।
  • बोरे के पर्दो को पानी से गीला करते रहना चाहिए।
  • अण्डादेय मुर्गीयों जो कि पिंजड़ों में है को स्पे्र की सहायता से गीला करते रहना चाहिए एवं मुर्गी आवास के उपर षीट में पैरा बिछाकर स्प्रिकलर से गीला करते रहना चाहिए।
  • मुर्गी आवास के अंदर पंखे या एग्जास्ट अवष्य लगाना चाहिए।
  • रात में देर तक व सुबह जल्दी दाना देना चाहिए।
  • मुर्गी प्यासी नहीं रहनी चाहिए एवं ठंड़ा पानी उपयोग में लाना चाहिए।
  • दोपहर के वक्त मुर्गीयों को दाना नही देना चाहिए।
कड़कनाथ कुक्कुट आवास की खिड़कीयों में पर्दे लगाने का तरीका -
                जैसा कि हम जानते है कि कोई भी आवास हो चाहे वह जानवर का, पक्षी का या आदमी का आवास में यदि स्वस्थ हवा एवं सूर्य की रोषनी आती है तो वह आवास सबसे अच्छा माना जाता है। सूर्य की रोषनी हवा एवं बरसात के पानी को मुर्गियों के आवास से नियंत्रित करने के लिए मुर्गी आवास को खिड़कियों में पर्दे लगाये जाते है।
  1. पर्दो को हमेषा उपर से 1 फिट जगह छोड़कर लगाना चाहिए।
  2. गर्मी के दिनांे में टाट या सूत के वोरे के पर्दो का उपयोग करना चाहिए।
  3. बरसात एवं ठंड़ के मौसम में मुर्गी आवास की खिड़कियों को पर्दे से पूरी तरह ढक देता है जिससे अंदर दूशित वायु बनती है, बुरादा गीला होने लगता है और मुर्गियाॅ साॅस सबंधी बीमारियाॅ पैदा होने लगती है मुर्गियों के पेट में पानी भरने लगता है और मुर्गियों का मरना चालू हो जाता है इसलिए किसान को ठंड के दिनों में यह ध्यान रखना चाहिए कि मुर्गी आवास में षुद्ध हवा का आगमन हो एवं दूशित वायु बाहर निकलती रहे।
बीमारी के आगमन की रोकथाम/बचाव
                बायोसिक्यूरिटी ऐसे उपाय है जिसके माध्यम से पक्षियों में आने वाली बीमारियों से बचा जा सकता है अतः बाहरी पषु, पक्षी या इंसान जो अपने साथ बीमारी के कारक लाते है इनका मुर्गी आवास में प्रवेष रोकना चाहिए क्योंकि सही टीकाकरण, सही सफाई एवं बाहरी जीवित प्रायियों का उचित ध्यान रखना ही आने वाली बीमारियों को रोकने का प्रमुख कारक है।
  1. बाहरी पषु, पक्षी आदि का कुक्कुट आवास में प्रवेष नही होने देना चाहिए।
  2. मोटर, गाड़ी आदि बाहरी वाहनों का प्रवेष नहीं होने देना चाहिए।
  3. बाहरी वाहन या ऐसा वाहन जो व्यवसाय से संबंध रखता हो ऐसे वाहनों को बिना डिस्इफेक्टेंट का छिड़काव किये कुक्कुट आवास में प्रवेष नही करना चाहिए।
  4. बाहरी लोगों के कपड़े, जूते, मोजे आदि अलग रखकर उन्हें कुक्कुट आवास की पोषाक पहनाकर एवं डिस्इफेक्टेंट का छिड़काव करके प्रवेष की अनुमति देना चाहिए।
  5. अलग-अलग मुर्गी आवास में अलग-अलग नौकरों की व्यवस्था करनी चाहिए।6. दवा वाले, दाने वाले, चूजे वाले एवं मुर्गा खरीदने वालों से मिलने का समय निष्चित होना चाहिए एवं मुर्गो के आवास से दूर कार्यालय में मिलना चाहिए।
  6. मुर्गी पालन हमेषा साथ पालने और एक साथ बेचने वाली पद्धति से करना चाहिए, ताकि बीमारी संक्रमण से बचाव हो सकें।
  7. आवास से तैयार माल की बिक्री हो जाने के पष्चात् करीब दो सप्ताह तक आवास में पुनः चूजा पालन नही करना चाहिए।
  8. आवास में लगे लोहे की खिड़की, दरवाजों एवं दीवाल के कोनों को फयूमीगेसन या फलेगमन से निर्जमीकृत अति आवष्यक होता है।
  9. मुर्गी आवास में पानी की टंकी, पानी के पाईप, पानी पीने के बर्तनों की सफाई बहुत अच्छे करना चाहिए।
  10. मरी हुई मुर्गियों को कुक्कुट आवास के आसपास नही फेंकना चाहिए इनको जलाना चाहिए या गहरे गढडे़ में दफन कर देना चाहिए।
  11. मुर्गियों के पिलाने वाला पानी स्वच्छ होना चाहिए एवं षुद्धता हेतु क्लोरीनीकरण या ब्लीचिंग पावडर का उपयोग करना चाहिए।
  12. आवास के मुख्य द्वार पर कीटनाषक का घोल बनाकर रखना चाहिए, ताकि जब कोई बाहरी लोग आते है, तो इस घोल में पैर डुबाकर अंदर प्रवेष कर सकते है।
  13. मुख्य मार्ग पर एवं आवास के आसपास चूने का बुरकाव करना चाहिए।
कड़कनाथ चूजों में जगह की आवष्यकता का विवरण -

                उम्र              जगह की आवष्यकता

1-10 दिन              3 चूजें/फीट

11-20 दिन              2 चूजें/फीट

21-32 दिन              1 चूजा/फीट

कड़कनाथ कुक्कुटों में दाना एवं पानी के बर्तनों की व्यवस्था -
                आटोमेटिक ड्रिकर या फीडर 100चूजों पर दो लगाना चाहिए। पुराने चद्दर के बने फीडर 100चूजों पर 2 लगाना चाहिए दाने एवं पानी के बर्तनों की उॅचाई मुर्गे के क्रापॅ या कंध की ऊॅचाई के बराबर होना चाहिए ताकि दाना खाने एवं पानी पीने में मुर्गे को असुविधा न हो। एवं दाना पानी खराब होने से बचा रहे यदि उॅचाई का ध्यान नही दिया गया तो मुर्गे आपस में नोंचना चालू कर देते है दाना खाते समय दाना गिराते ज्यादा है बैठकर दाना खाते है एवं वही बैठ जाते है और उठते नही जिससे दूसरे मुर्गे को खोने का मौका नही मिल पाता जिसका असर वजन पर पड़ता है।कड़कनाथ कुक्कुटों में वृद्धि मापने का तरीका -
  • इसको एक समीकरण से नापते है जिसको फीड़ कनेक्षन रेस्यों ;थ्ब्त्द्ध नाम दिया गया है। जो दाना खाने से वजन में वृद्धि को प्रदर्षित करता है।
  • कुल वजन खपत (कि.ग्रा.) /कुल मुर्गे का वजन (कि.ग्रा.)जैसे 120 दिन के मुर्गे ने 120 दिनों में कुल 4000 ग्राम या 4.00कि.ग्रा. दाना खाया एवं उसका वजन 120 दिनों में 1100ग्राम या 1.10 कि.ग्रा. आया तो इसका थ्ब्त् 4000ध्1100त्र 3ण्63 होगा जिसका मतलब है कि 3.63किलो दाना देने पर कड़कनाथ मुर्गे मंे 120 दिनों में 1.1किलो वजन आ जाता है।
अण्डादेय कड़कनाथ मुर्गीयों में प्रबंधन -
       अण्डादेय मुर्गियां वे कहलाती है जिन्हें केवल अण्डे उत्पादन के लिए पाला जाता है इनका वजन कम होता है कड़कनाथ मुर्गियों से प्रतिवर्श 70 से 80अण्डे प्राप्त कर सकते है, जबकि व्याइट लेगहार्न प्रजाति की मुर्गि से प्रतिवर्श 320 अण्डे प्राप्त किये जा सकते है।

                अण्डादेय मुर्गियों को पालने की तीन अवस्थायें होती है।
  1. चूजों का पालन        - 1 सप्ताह से 8सप्ताह तक
  2. बाढ़ (ग्रोवर) पालन      - 9 सप्ताह से 18सप्ताह तक
  3. लेयर (अण्डोत्पादन अवस्था)    - 19सप्ताह से 72 सप्ताह तक
चूजों का पालन:- इस अवस्था को बुड़िंग अवस्था कहते है। इन चूजों को चिक स्टार्टर मेस दिया जाता है जिससे 2750किलो कैलोरी उर्जा एवं 20 पसे 21 प्रतिषत प्रोटीन, 1 प्रतिषत कैल्षियम और 0.45प्रतिषत फास्फोरस की मात्रा होती है चिक स्टार्टर मेस में दाना लगभग 7 से 8 सप्ताह तक चूजों को दिया जाता है इस अवस्था में चूजों का वजन लगभग 450ग्राम के आसपास हो जाता है।

बढ़ (ग्रोवर) पालन का समय -बू्रडिंग के बाद एवं अण्डा उत्पादन के पूर्व का समय बाढ़ (ग्रोवर) का समय कहलाता है ये दोनों अवस्थायें अण्डोत्पादन को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण योगदान करती है इस पर ही भविश्य में अण्डादेय मुर्गियों की अण्डोत्पादन क्षमता पूर्ण निर्भर करती है। बाढ़ (ग्रोवर) अवस्था में ग्रोवर मेस दाना दिया जाता है जिसमें 2600किलो कैलोरी उर्जा, 17-18 प्रतिषत प्रोटीन, 1 प्रतिषत कैल्षियम और 0.4 प्रतिषत फास्फोरस होता है।

लेयर अवस्था - जैसे की मुर्गियों में अण्डा उत्पादन षुरू हो जाता है तब इनको लेयर मेस दाना दिया जाता है जिसमें 2500किलो कैलोरी उर्जा, 18 प्रतिषत प्रोटीन, 3.5 प्रतिषत कैल्षियम और 0.45 प्रतिषत फास्फोरस होता है।विभिन्न सप्ताहों में अण्डों का उत्पादन -

                                सप्ताह           अण्डोत्पादन प्रतिषत

                                20                                           10प्रतिषत

                                26                                           97प्रतिषत

                                50                                           90प्रतिषत

                                60                                           85प्रतिषत

                                72                                           80-85प्रतिषत

                एक अण्डादेय मुर्गी की अण्डोत्पादन की अवस्था में 42 किलो आहार की खपत हो जाती है।
अण्डादेय कड़कनाथ मुर्गियों का सप्ताहवार प्रबंधन -
प्रथम सप्ताह -
  1. ब्रुडर का तापमान 90॰ थ् होना चाहिए।
  2. गुड़ या षक्कर या इलेक्ट्रोलाईसस आदि पानी में देना चाहिए।
  3. विटामीन, एण्टीबायोटिक दवायें देना चाहिए।
  4. मक्के का दलिया पेपर के उपर बुरकना चाहिए एवं धीरे-धीरे प्लेट, टेª,एग टेª या फीडर लगाना चाहिए।
  5. चूजों को आरामदेय वातावरण में पालना चाहिए।
  6. कमजोर सुस्त चूजों को प्रथक ब्रुडर में पालना चाहिए।
  7. पहले दो दिन चैबीस घन्टे प्रकाष देना चाहिए।
  8. गम्बेरो टीकाकरण, तीसरे दिन आॅख में ड्रापर कर सहायता से देना चाहिए।
  9. सातवें दिन लसोटा एफ-1 आई ड्राप से देना चाहिए।
दूसरा सप्ताह -
  1. बू्रडर का तापमान 85॰ थ् से 90॰ थ् कर देना चाहिये।
  2. बू्रडर गार्ड एवं ब्रूडर एरिया बढ़ा देना चाहिए बू्रडर की उॅचाई बढ़ा देना चाहिए।
  3. पानी एवं दाने के बर्तन प्रति हजार चूजों 20/20 की मात्रा में आवष्यक रूप से होना चाहिए। 
  4. 7 से 10दिन में टचिंग डीविकिंग (चोंच काटना) करना चाहिए इसके बाद 3 से 5 दिन तक विटामीन पीने के पानी में देना चाहिए।
  5. देखना चाहिए चूजों की बढ़त सामान्य है कि नही।
  6. 14 वें दिन गम्बेरों इन्टरमीडियेट पानी में एवं 11/12 दिन इन्फेक्षियस ब्रोन्काइटिस टीकाकरण करना चाहिए।
  7. 16-22घण्टे तक प्रकाष देना चाहिए।
तीसरा सप्ताह -
  1. बू्रडर का तापमान 88 थ् से 85 थ् होना चाहिये।
  2. बू्रडर एरिया बढ़ा देना चाहिए यदि गर्मी के दिन हो तो पूरे षेड का उपयोग करना चाहिए।
  3. 14-16घण्टे तक प्रकाष देना चाहिए।
  4. षारीरिक वजन 140ग्राम होना चाहिए।
  5. मल की जाॅच करना चाहिए एवं आवष्यक हो तो एन्अीकाक्सीडियल दवा देना चाहिए।
  6. टीकाकरण 21वें दिन इन्फेक्षियस ब्रोन्काइटिस टीकाकरण आई ड्राप द्वारा करना चाहिए।
चैथा सप्ताह -
  1. बू्रडर का तापमान 75 थ् से 80 थ् होना चाहिए।
  2. बू्रडर एवं बू्रडर गार्ड पूर्णरूप से हटा देना चाहिए।
  3. प्रति चूजा 0.5वर्ग फिट जगह देना चाहिए।
  4. दाना बर्तनों में कम-कम एवं बार-बार डालना चाहिए।
  5. 12 घण्टे प्रकाष देना चाहिए।
  6. दाने एवं पानी के बर्तनों की सफाई बराबर ध्यान से रखनी चाहिए।
  7. 24 वें दिन गम्बेरों में पानी देना चाहिए।
पांचवा सप्ताह -
  1. बू्रडर का तापमान 65 थ् से 75 थ् होना चाहिए।
  2. षारीरिक वजन 280ग्राम तक होना चाहिए।
  3. 10-12घण्टे तक प्रकाष की आवष्यकता होती है जो कि सूर्य के प्रकाष से हो जाता है।
  4. टीकाकरण रानी खेत बीमारी का लसोटा टीका 20 से 25दिनों में पीने के पानी के द्वारा करना चाहिए।
  5. आहार की मात्रा, पानी तथा बुरादे के प्रबंधन पर विषेश ध्यान देना चाहिए।
छंटवा सप्ताह-
  1. षारीरिक भार सामान्य रूप से प्राप्त हो चुका हो तो ग्रोवर  मेस दाना देना षुरू कर देना चाहिए।
  2. षारीरिक भार390ग्राम होना चाहिए।
  3. 11 से 12घण्टे प्रकाष देना चाहिए।
  4. फाउॅल पोक्स का टीकाकरण करने चाहिए। जिसे मांस पेषियों में लगाते है।8. पंख सड़न (डर्माटाइटिस) बीमारी की जाॅच करें यदि यह बीमारी आ गई है तो तुरंत इसकी दवाई दें
आंठवा सप्ताह -
  1. षारीरिक भार 510ग्राम होना चाहिए।
  2. सिर्फ दिन का प्रकाष देना चाहिए।
  3. कमजोर एवं बीमार पक्षीयों को समूह से अलग रखना चाहिए।
  4.  50-55दिन में लसोटा टीकाकरण पीने के पानी में देना चाहिए।
नौवां सप्ताह -
  1. षारीरिक भार 510ग्राम होना चाहिए।
  2. सिर्फ दिन का प्रकाष देना चाहिए।
दसवां सप्ताह -
  1. षारीरिक भार 690ग्राम होना चाहिए।
  2. सिर्फ दिन का प्रकाष देना चाहिए।
  3.  षारीरिक वजन एवं आकार के आधार पक्षीयों की श्रेणी बना लेना चाहिए।
ग्वारहवां सप्ताह -
  1. षारीरिक भार 750ग्राम होना चाहिए।
  2. 12 घण्टे तक प्रकाष देना चाहिए।
  3. इन्फेक्षियष ब्रोन्काइटिस एवं रानीखेत (लसोटा) टीकाकरण पीने के पानी के द्वारा करना चाहिए।
बांरवा सप्ताह -
  1. षारीरिक भार 830ग्राम होना चाहिए।
  2. 12 घण्टे तक प्रकाष देना चाहिए।
  3. क्रमिनाषक दवा देना चाहिए।
  4. काक्सीडियोसिस की रोकथाम करना चाहिए इसके लिए एन्टीकाक्सीडियोसिस दवा देना चाहिए।
तैरहवां सप्ताह -
  1. षारीरिक भार 910ग्राम होना चाहिए।
  2. प्रकाष 12घण्टे।
  3. रानीखेत बीमारी का आर-2 बी टीकाकरण मांसपेषियों द्वारा देना चाहिए।
  4. विटामीन अतिरिक्त मात्रा में देना चाहिए।
चैदहवां सप्ताह -
  1. षारीरिक भार 990ग्राम होना चाहिए।
  2. प्रकाष 12 घण्टे।
  3. समूह में देखना चाहिए कि श्रेणीबद्ध करने के पष्चात् बढ़त में सामन्य वृद्धि हो रही है कि नही। 1. अंतिम बार चोंच काटने (डीविकिंग) की तैयारी करना चाहिए।
पंद्रहवा सप्ताह -
  1. षारीरिक भार 1020ग्राम होना चाहिए।
  2. प्रकाष 12घण्टे।
  3. मुर्गीयां स्वस्थ है, षारीरिक भार सामान्य है या नही, आहार की खपत ठीक है या नही इन बातों की निरीक्षण कर लेना चाहिए।
  4. फाउॅल पाक्स टीकाकरण मांसपेषियों में देना चाहिए।
16वां सप्ताह -
  1. षारीरिक भार 1080ग्राम होना चाहिए।
  2. प्रकाष 12घण्टे।
  3. अंतिम बार चैंच काटना (डीविकिंग) करना एवं डीविकिंग के तनाव से बचाना व अतिरिक्त विटामीन की मात्रा देना चाहिए।
17वां सप्ताह -
  1. षारीरिक भार 1120ग्राम होना चाहिए।
  2. प्रकाष 12घण्टे।
  3. मुर्गीयों के समुह से बांध या कुड़क मुर्गीयों को अलग कर देना चाहिए।
  4. अण्डादेय मुर्गीयों को लेयर पिंजड़ों में स्ािानांतरित कर देना चाहिए, जिसकी चैड़ाई 15 इंच, गहराई 12 इंच एवं उॅचाई 18इंच होना चाहिए।
18वां सप्ताह -
  1. षारीरिक भार 1180ग्राम होना चाहिए।
  2. प्रकाष 11-12घण्टे।
  3. क्रमीविहिनीकरण के लिये विडविंग दवा पानी में देना चाहिए।
  4. प्री-लेयर मेस आहार देना चाहिए।
19 वां सप्ताह-
  1. षारीरिक भार 1220 ग्राम होना चाहिए।
  2. प्रकाष 11-12घण्टे।
  3. प्री-लेयर मेस दाना देना चाहिए।
  4. यह देखना चाहिए कि अण्डों के उत्पादन में वृद्धि हो रही है कि नही।
20वां सप्ताह -
  1. षारीरिक भार 1290ग्राम होेना चाहिए।2. प्रकाष 12 घण्टे 1घण्टा प्रति 5 प्रतिषत अण्डोत्पादन बढ़ने पर देना चाहिए।
  2. प्री-लेयर मेस दाना 5 प्रतिषत उत्पादन होने पर चालू करना चाहिए।
  3. प्रति सप्ताह वजन बढ़ाने वाली दवा एवं विटामीन देना चाहिए।
  4. मुर्गीयां अपने जीवन काल का पहला अण्डा इसी सप्ताह में देेती है।
21वां सप्ताह -
  1. प्रकाष प्रति सप्ताह 15 से 30 मिनिट तक बढ़ाये और 16.5 से 17 घण्टे तक ले जाना चाहिए।
  2. संतुलित आहार उपयोग करना चाहिए।
  3. सफाई का विषेश ध्यान देना चाहिए।
  4. अण्डों का संचयन समय पर करते रहना चाहिए।
  5. लसोटा टीकाकरण 8 से 12 सप्ताह के अंतराल में देते रहना चाहिए।
अण्डादेय कड़कनाथ मुर्गीयों में विद्युत (प्रकाष) कार्यक्रम -
                जब तक की मुर्गीयों का वजन 1300ग्राम न हो जाये तब तक दिन की बिजली में वृद्धि नही करना चाहिए। प्रकाष के माध्यम से मुर्गीयों की अण्डोत्पादन क्षमता को सुदृढ व परिपक्व बनाया जाता है। जिससे मुर्गीयां 19 वें सप्ताह से अण्डोत्पादन 36 वें सप्ताह से मिलता है इसलिये प्रकाष में वृद्धि 20 वें सप्ताह से षुरू कर देना चाहिए।

आयु प्रतिदिन बिजली देने का समय -

1-2 दिन               22 घण्टे

3-4 दिन               20 घण्टे

5-6 दिन               18 घण्टे

7-14 दिन              16 घण्टे

15-21 दिन              14 घण्टे

22-28 दिन              12 घण्टे

29-133दिन             10-12 घण्टे

20 सप्ताह              11.5 घण्टे

21 सप्ताह              12 घण्टे

22 सप्ताह              12.5 घण्टे

23 सप्ताह              13 घण्टे

23 से 28वें सप्ताह के बीच में  13़ आधे घण्टे बिजली में वृद्धि प्रति सप्ताह करना चाहिए जब तक प्रकाष समय 16-17  घण्टे न हो जायें।

कड़कनाथ कुक्कुटों में होने वाली बीमारियां -

                कुक्कुटों में लगने वाले रोग निम्न प्रकार के होते है।

पुलोरम या सफेद दस्त मुर्गियों का घातक रोग है जो सालमोनेला पुलोरम नामक जीवाणु द्वारा होता है। यह तीन सप्ताह से कम उम्र के चुजों पर आक्रमण करता है। और वे अक्सर मर जाते है, और जो इस रोग से बच जाते है उनके अण्डों में इस रोग के जीवाणु प्रवेष कर जाते है। इस प्रकार इन अण्डों से निकले चूजों को भी यह रोग लग जाता है।
लक्षण -
  1. मुर्गियों में अण्डे देने की प्रतिषत मात्रा कम हो जाय।
  2. एक सप्ताह से अधिक आयु के चुजों को प्यास बहुत लगे, झुण्ड में इधर-उधर चक्कर काटें, सांस लेने में तकलीफ हो और सफेद रंग के पानी जैसे दस्त लग जायें।
  3. चूजें अधिक संख्या में मरें।
  4. मुर्गियां अण्डे कम दे, कुछ मर जाएं, और अन्य बार-बार सफेद रंग की बीट करें तब आप उनमें पुलोरम रोग की फेलने की षंका कर सकते है।
यदि आप मरें हुए चूजों को काट कर देखें तो आपको मालूम होगा कि -
  • उनके फेफड़ों पर आवष्यकता से अधिक खून जमा है।
  • लीवर पर भुरे रंग के धब्बे है।
  • दिल के उपरी भाग में थोड़ी सूजन है।
रोग की रोकथाम -
        जीवाणु रोधक (एन्टीबायोटिक) दवाएं जैसे सल्फोनामाइड्स एवं नाइट्रोॅयूरास से इस बीमारी की रोकथाम की जा सकती है। लेकिन यह दवाएं पुरी तरह से इस बीमारी को रोकथाम नही कर पाती है अतः रोगी पक्षियों को नश्ट कर देना हि सबसे अच्छा है।
2. कुक्कुटों में जुकाम -
                मुर्गियों की जुकाम से रक्षा करना अतिआवष्यक है यह एक भंयकर रोग है जो एक प्रकार के वायरस के द्वारा फैलाया जाता है 8 से 16 सप्ताह की आयु वाले पक्षियों पर इसका आक्रमण विषेश होता है। फलस्वरूप बहुत से पक्षी मर जाते है।
लक्षण - पहले पक्षी के नथुनों और आंखों में से पानी बहने लगता है बाद मे यह पानी गाड़ा हो जाता है आखों की पलके चिपक जाती है। पलकों और आखों की एक या दोेनों पुतलियों के बीच पस जैसा पदार्थ इकट्ठा हो जाता है। पक्षियों को सांस लेने में बड़ी कठिनाई होती है। वे सुस्त और उदास हो जाते है और बार-बार सिर हिलाते है। वे खांसने और छिकने लगते है। उनका चेंहरा मुंह द्वारा सांस लेने के कारण सूज जाता है।
रोकथाम के उपाय -
  1. बहुत अधिक पक्षी एकही स्थान पर न रखें।
  2. हवा के आने जाने का अच्छा प्रंबध करें।
  3. नमी ना होने दें।
  4. जीवाणु रोधक दवा (एन्टीबायोटिक) पानी में घोलकर पक्षी को पिलावें।
  5. पक्षियों का टीकाकरण समयानुसार करें।
3. कुक्कुटों में खुनी दस्त
खूनी दस्त (काक्सीडियोसिस) लगने से विषेश कर तीन से छःसप्ताह के आयु वाले चुजें मर जाते है। रोग आंरभ होने पर चूजें सुस्त हो जाते है रोगी चूजें इक्टठे होकर चारों ओर चक्कर काटते फिरते है। उनके पंख मुड़ जाते है। पलके झपकने लगती है। भुख नही लगती और बार-बार खून के दस्त होते है। बीट के साथ खून आता है। अधिकांष पक्षी खूनी दस्त लगने के बाद एक सप्ताह से दस दिन के अन्दर मर जाते है।
पक्षियों को रोग कैसे लगता है -
                यह रोग परिजीवि से होता है जो पक्षी के खून में रहता है एवं बीट के साथ खूनी दस्त के रूप में बाहर आता है। जब अन्य पक्षी खूनी दस्त से दूशित पदार्थो (दाना, पानी) को खा लेते है तब उनको भी यह रोग हो जाता है। छः सप्ताह से ज्यादा उम्र वाले पक्षियों को इस बीमारी से कोई हानि नही होती है। परन्तु स्वस्थ चूजों (तीन-छः सप्ताह उम्र) में यह रोग उनके द्वारा फेल सकता है।
रोग की रोकथाम -
  • मुर्गीघर एवं दड़बों को अच्छी प्रकार साफ सुथरा रखें।
  • दड़बों में पक्षियों की संख्या अधिक नही रखें।
  • हर रोज फर्ष पर बीट साफ रखें।
रोगी कुक्कुटों का इलाज -
मुर्गियों के भोजन या पानी में सल्फामेजाथीन, सल्फाक्यूनाक्सलीन या सल्फाग्वानिडीन दवा देना चाहिए।
कुक्कुटों में रानीखेत बीमारी
          रानीखेत मुर्गीयों का एक भंयकर रोग है। और कभी-कभी इस रोग से सारी मुर्गियां मर जाती है, यह रोग सभी आयु की मुर्गियों पर आक्रमण करता है। इस रोग के कारण मुर्गि पालकों को विषेश कर बरसात में भारी हानि होती है।

लक्षण -जब चूजों पर इस रोग का मामुली आक्रमण होता है तब -
  1. वे सुस्त और उनके पंख मुड़े दिखाई देते है, आॅखें बंद रखतें हैं, भूख नही लगती है।
  2. जल्दी जल्दी सांस लेते है, और कभी-कभी सांस के साथ सीटी की आवाज निकलती है। मुंह से सांस लेते है।
  3. ज्वार हो जाता है, प्यास बहुत लगती है, और पीले रंग के पानी जैसे दस्त लग जाते है।
  4. चोंच से कफ निकालने के लिये अक्सर सिर हिलाते हुए दिखाई देते है।
                रोग के बढ़ने पर चूजें मरने लगते है इसके आक्रमण से जो चूजें बच जाते है उनके गरदन या टांगों को लकवा मार जाता है। मुर्गियां इस रोग से ठीक होने के बाद दिखने में तो ठीक लगती है। परन्तु आम तौर पर अण्डे नही देती है। कभी-कभी पक्षी की गरदन पीछे की ओर मुड़ जाती है।

                रोग की भंयकर अवस्था में चूजों में इस बीमारी के केवल कुछ ही लक्षण दिखाई देते है। ओर वे अचानक मर जाते है। परन्तु प्रोढ़ पक्षी कुछ देर से मरते है।
रोग का कारण -
                यह रोग एक प्रकार के विशाणु के कारण होता है जो आंखों से दिखाई नहीं देते है।रोग कैसे फैलता है - इस रोग के विशाणु मुर्गी षाला तक जंगली चिड़ीयों, कबूतरों और कौओं या उनकी देखभाल करने वाले व्यक्तियों के द्वारा आते है। उनके पानी और आहार में ये विशाणु प्रवेष कर जाते है। जब स्वस्थ पक्षी इस छुत लगे भोजन या पानी को खाते या पीते है तब यह उनको रोग लग जाता है। इस रोग से ठीक हूई मुर्गी भी इसके विशाणु स्वस्थ पक्षियों तक ले जा सकती है। झुंड में एक बार इस रोग के आरम्भ हो जाने पर रोगी पक्षियों के थुकबीट आदि में यह रोग स्वस्थ पक्षियों में तेजी से फेलता है।
रोकथाम कैसे करें -
                इस रोग से पक्षियों की रक्षा का एक मात्र तरीका रोक के रोकथाम के उपाय करना है, एक बार रोग आरंभ हो जाने पर कोई भी दवा इलाज नही कर सकती। समयानुसार रानीखेत का टीकाकरण चुजों एवं पक्षियों में कराकर निष्चित रूप से इस बीमारी की रोकथाम की जा सकती है।

5. कुक्कुटों में चेचक
                सभी उम्र की कुक्कुटों को चेचक रोग, सामान्यतः हो जाता है। यह रोग अक्सर गर्मी में होता है और इससे अनेक पक्षी मर जाते है, वे काफी कमजोर हो जाते है। ऐसे पक्षियों की बढ़वार ठीक नहीं होती और उनको अन्य रोग आसानी से लग जाते है। यद्यपि यह रोग सब आयु के पक्षियों को लगता है, फिर भी दड़बा घरों से हाल ही में निकाले गए आठ से बारह सप्ताह की आयु वाले चूजों को आसानी से लगता है। छोटे चूजों को दड़बा-घरों में भी चेचक रोग लग जाता है। इस रोग से एक बार स्वस्थ हुए पक्षियों को, सामान्यतः यह रोग दुबारा नही लगता।

                यह रोग एक प्रकार के जीवाणुओं के कारण होता है। एक बार आरम्भ हो जाने पर यह रोग बहुत तेजी से फैलता है।
चेचक रोग के परिणाम -
           चेचक रोग का आक्रमण होने पर मुर्गी का कलगी, चोंच, पलकों, सिर, टाॅगों, पर षरीर के ऐसे ही अन्य पंखहीन भागों पर छोटी, सूखी और भूरे रंग की फॅुसियां खाल से चिपकी रहती है और अन्त में गहरे रंग की हो जाती है। जब इस रोग का आक्रमण केवल पक्षी की खाल पर होता है, तब पक्षी की बढ़वार रूक जाती है और अण्डों का उत्पादन भी कम हो जाता है, परन्तु आमतौर पर पक्षी मरता नही है।
                परन्तु जब रोग का आक्रमण अधिक भयानक रूप से होता है, तब गले, मुॅह और आॅखों में हल्के पीले रंग की झिल्ली सी पड़ जाती है। गले और ष्वास नली में छोटी-छोटी फुुंसियां होने के कारण चूजों का दम घूटता है।जब आॅख पर आक्रमण होता है, तब पुतली सिर भी सूज जाता है। ऐसे सब पक्षी मर जाते है।
चेचक की रोकथाम कैसे करें -
           चेचक रोग के एक बार आरम्भ होने पर इसकी रोकथाम नहीं कर सकते। रोकथाम का एकमात्र उपाय अपने पक्षियों को चेचकरोधी टीका लगवाना है।
       चेचक को रोकने के दो किस्म के टीके मिलते है-पिजियन पाॅक्स वैक्सीन और फाउल पाॅक्स वैक्सीन । पिजियन पाॅक्स वैक्सीन से चूजे की सुरक्षा होती है और इसका असर लगभग केवल तीन मास तक रहता है। परन्तु फाउल पाॅक्स वैक्सीन से पक्षियों की इस रोग से आजीवन रक्षा होती है। फाउल पाॅक्स वैक्सीन काॅच की सील बन्द नलियों में सूखा मिलता है।
     अपने पक्षियों के टीका गर्मियां षुरू होने से पहले ही लगवा दीजिए। टीका लगवाने के लिए अपने ग्राम सेवक या पषु चिकित्सा अधिकारीयों से सम्पर्क में रहें।
  1. फाउल पाॅक्स वैक्सीन में ग्लिसरीन या नमक का पानी टीका लगाने के ठीक पहले ही मिलाएं।
  2. चूजें से डेने के अन्दर कई बार सूई चुभो कर दवा को षरीर में प्रवेष कराइए।
  3. दड़बे से दूर वृक्ष की छाया में पक्षियों को टीका लगाकर चूजों को धूप वाले बाड़े में अलग रखिएं, ताकि उनको दड़बें में छूत न लग जाएं।
  4. टीका लगाते हुए पक्षियों को स्वयं न पकडियें। बची रह गयी वैक्सीन को जला दीजिए और दवा की खाली षीषी को सुरक्षित जगह में फेंक दीजिए।
  5. टीका लगे चूजों से उसी दड़बे की अन्य मुर्गियों या चूजों को यह रोग लग सकता है। इसलिए जब आप यह देखें कि सब पक्षियों के एक ही समय में टीके नहीं लग सकते, तब दड़बे में टीका न लगाइए।
  6. छः से आठ सप्ताह की आयु के चूजों के टीका लगाना सबसे अच्छा रहता है।
  7. जब चेचक रोग का खतरा हो, तब एक महीने से कम आयु के सब चूजों और अण्डे देने वाले पक्षियों के यदि उनके पहले कोई टीका न लगा हो तो फिजियन पाॅक्स का टीका लगाइयें और कुछ समय बाद फाउल पाॅक्स का टीका लगाइयें।
  8. गर्मी में पैदा हुए चूजें कमजोर होते है, उनको पहले पिजियन पाक्स का टीका लगाइयें और कुछ समय बाद फाउल पाॅक्स का टीका लगाइयें।कड़कनाथ कुक्कुटों की
बीमारियों को रोकने के तरिके -
        बीमार पक्षी की पहचान यह है कि पक्षी सुस्त हो जाता है, भुख का अभाव, पंख नीचे को झुक जाते है तथा पक्षी एकांत में बैठना पसंद करता है।
  • बीमार पक्षी को षेश झुंड से पृथक तुरंत करें तथा बीमार एवं स्वस्थ पक्षीयों की देखभाल पृथक-पृथक व्यक्त् िकरें।
  • बीमार मरे हुए पक्षी को या जला दें या इतना गहरा गाड दें कि उसे कुत्ते इत्यादि न खोदनें पायें।
  • बीमार पक्षियों के प्रबंध में लगा व्यक्ति अपने हाथों को जिवाणु रहित करके ही स्वस्थ पक्षियोें का प्रबधंन करें।
  • दड़बे के सभी उपकरणों को भली भांति प्रकार साफ कर जिवाणु रहित कर लेना चाहिए।
  •  पीने के पानी में थोड़ा पोटेषियम परमैगनेट मिलाकर पीने को देे।
  • किसी भी पक्षी के बीमार होते ही पषुओं के डाक्टर से सलाह अवष्य लें।
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