Tuesday, September 11, 2018

भैंस- प्रजाति

भैसों की प्रमुख नस्ले

आलेख एवं संकलन

डा. चन्दन कुमार, वैज्ञानिक (पशुपालन उत्पादन एवं प्रबंधन) एवं श्री दया राम चैाहान(तकनीकी अधिकारी)

कृषि विज्ञान केन्द्र झाबुआ (राविसि कृषि विश्वविद्यालय ग्वालियर)

 

1.      मुर्रा- भैंस की यह नस्ल विष्व की सबसे अच्छी दुधारू भैंस की नस्ल है। यह लगभग भारत के सभी हिस्सों में पायी जाती है। इसका गृह क्षेत्र हरियाण के रोहतक, हिसार, जिन्द व करनाल जिले तथा दिल्ली व पंजाब है। इसका विषिश्ट रंग जेट काला है। इस नस्ल की मुख्य विषेशता छोटे मुड़े हुए सींध तथा खुर व पूँछ के निचले हिस्से में सफेद धब्बे का होता हैं।

औसत दुग्ध उत्पादन/व्यात 1678 कि.्रग्रा. 307 दिनां में प्रथम व्यात की उम्र 40 से 45 माह दो व्यात के बीच का अंतराल 450 से 500 दिन


2.      सुरती- भैंस की इस नस्ल का गृह क्षेत्र गुजरात है। यह भूमिहीन, छोटे व सीमान्त किसनों में बहुत प्रचलित हैं इसका कारण इसकी छोटी षारीरिक बनावट है इस नस्ल की सींधी हाँसियाकार होती है।

औसत दुग्ध उत्पादन/व्यात-1400 कि.ग्रा. 352 दिनांें में दूध वसा की मात्रा 8 से 9

प्रथम व्यात की आयु- 40 से 50 माह दो व्यात के बीच का अंतराल- 400 से 500 दिन

  


 3.      जाफराबादी- इस नस्ल का प्रजनन प्रक्षेत्र गुजरात के कच्छ व जामनगर जिले है। यह भैंस की सबसे भारी नस्ल है। इसके अग्र सिर में सफेद निषान ’नव चन्द्र’ के नाम से जाना जाता है।

औसत दुग्ध उत्पादन/व्यात 2150 कि.ग्रा. 305 दिनांे में दुग्ध वसा की मात्रा 7.8

प्रथम व्यात की आयु- 36 से 40 माह

दो व्यात के बीच का अंतराल- 390 से 480 दिन

 


4.      मेहसाना-  इस नस्ल का गृह क्षेत्र गुजरात है यह मध्यम आकार की षांत स्वभाव की नस्ल है। इस नस्ल की उत्पत्ति गुजरात की सुरती नस्ल व महाराश्ट्र की मुर्रा नस्ल के संकर से हुई है।

दुग्ध उत्पादन/व्यास-1200 से 1500 कि.ग्रा.

दुग्ध वसा की मात्रा- लगभग 7

   


 

5.      भदावरी- यह विष्व की एक विलक्षक नस्ल है, क्योंकि समस्त गोजातीय (वोवाइन) जातियों में सबसे अधिक दुग्ध वसा की मात्रा इसके दुग्ध में होती है। अतः इसे भारत के घी का कटोरा के नाम से भी जाना जाता है।

इस नस्ल का गृह क्षेत्र उत्तर प्रदेेष की भदावरी तहसील जिला आगरा एवं जिला इटावा है।

औसत दुग्ध उत्पादन/व्यात 800 कि.ग्रा.

दुग्ध वसा की मात्रा- लगभग 13

  


6.      गोदावरी- इस नस्ल का गृह क्षेत्र आंध्रप्रदेष के पूर्व व पष्चिम गोदावरी जिले है, यह नस्ल अच्छे दुग्ध उत्पादन एवं अच्छी दुग्ध वसा के लिए जानी जाती है। इस नस्ल में कई गो जातिया रोगों के विरूद्ध प्रतिरोधक क्षमता होती है। इस नस्ल की उत्पत्ति मुर्रा नरो की सहायता से मूल निवासी मादाओं के संकर से हुई है, यह प्रक्रिया ग्रेडिग अप के नाम से जानी जाती है।

औसत दुग्ध उत्पादन/व्यात- 2150 कि.ग्रा. 305 दिनांे में

  

 


 

7.      नगपुरी- यह नस्ल दोहरे उपयोग की हैं अर्थात नर यातायात हेतु उपयोगी हैं तथा मादा अच्छी दुधारू हैं। इस नस्ल का गृह क्षेत्र महाराश्ट्र है।

औसत दुग्ध उत्पादन/व्यात- 1060 कि.ग्रा.

  


8.      सांभलपुरी- इस नस्ल का गृह क्षेत्र उड़ीसा का सांभलपुर जिला है, यह नस्ल छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में भी पायी जाती है। यह नस्ल दोहरे उपयोग हेतु उपयोगी है।

दुग्ध उत्पादन/व्यात- 2300 से 2700 कि.ग्रा. 340 से 370 दिनांे में

  


 

9.      तराई- यह मध्यम आकार की नस्ल है तथा कम चारे में भी पर्याप्त मात्रा में दूध देती है। यह नस्ल उत्तर प्रदेष के तराई क्षेत्रों में तथा उत्तराखं डमें पाई जाती है।

औसत दुग्ध उत्पादन 1030 कि.ग्रा.

  

10.   टोड़ा- इस नस्ल का नाम दक्षिण भारत के टोड़ा आदिवासियों के नाम पर है। इस नस्ल का गृह क्षेत्र तमिलनाडू की नील गिर पहाड़ियों है। इस नस्ल की उत्पत्ति प्रतिकूल परिस्थितियों में अनुकूलन से हुई है।

औसत दुग्ध उत्पादन/व्यात- 500 कि.ग्रा.

दुग्ध वसा की मात्रा- 8.22

  



11.   साउथ कनारा- यह मध्यम आकार की प्रचलित नस्ल है। यह नस्ल कर्नाटक के बंगलौर जिले के समुद्रतटीय क्षेत्रों में पायी जाती है।

औसत दुग्ध उत्पादन 600 से 800 कि.ग्रा. 185


से 260 दिनों में



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