Tuesday, September 11, 2018

मुर्गी- स्वस्थ्य प्रबंधन



कड़कनाथ कुक्कुटों में होने वाली बीमारियां -
                कुक्कुटों में लगने वाले रोग निम्न प्रकार के होते है।
पुलोरम या सफेद दस्त मुर्गियों का घातक रोग है जो सालमोनेला पुलोरम नामक जीवाणु द्वारा होता है। यह तीन सप्ताह से कम उम्र के चुजों पर आक्रमण करता है। और वे अक्सर मर जाते है, और जो इस रोग से बच जाते है उनके अण्डों में इस रोग के जीवाणु प्रवेष कर जाते है। इस प्रकार इन अण्डों से निकले चूजों को भी यह रोग लग जाता है।
लक्षण -
1. मुर्गियों में अण्डे देने की प्रतिषत मात्रा कम हो जाय।
2. एक सप्ताह से अधिक आयु के चुजों को प्यास बहुत लगे, झुण्ड में इधर-उधर चक्कर काटें, सांस लेने में तकलीफ हो और सफेद रंग के पानी जैसे दस्त लग जायें।
3. चूजें अधिक संख्या में मरें।
4. मुर्गियां अण्डे कम दे, कुछ मर जाएं, और अन्य बार-बार सफेद रंग की बीट करें तब आप उनमें पुलोरम रोग की फेलने की षंका कर सकते है।
यदि आप मरें हुए चूजों को काट कर देखें तो आपको मालूम होगा कि -
1. उनके फेफड़ों पर आवष्यकता से अधिक खून जमा है।
2. लीवर पर भुरे रंग के धब्बे है।
3. दिल के उपरी भाग में थोड़ी सूजन है।
रोग की रोकथाम -
                जीवाणु रोधक (एन्टीबायोटिक) दवाएं जैसे सल्फोनामाइड्स एवं नाइट्रोॅयूरास से इस बीमारी की रोकथाम की जा सकती है। लेकिन यह दवाएं
पुरी तरह से इस बीमारी को रोकथाम नही कर पाती है अतः रोगी पक्षियों को नश्ट कर देना हि सबसे अच्छा है।
2. कुक्कुटों में जुकाम -
                मुर्गियों की जुकाम से रक्षा करना अतिआवष्यक है यह एक भंयकर रोग है जो एक प्रकार के वायरस के द्वारा फैलाया जाता है 8 से 16 सप्ताह की आयु वाले पक्षियों पर इसका आक्रमण विषेश होता है। फलस्वरूप बहुत से पक्षी मर जाते है।
लक्षण - पहले पक्षी के नथुनों और आंखों में से पानी बहने लगता है बाद मे यह पानी गाड़ा हो जाता है आखों की पलके चिपक जाती है। पलकों और आखों की एक या दोेनों पुतलियों के बीच पस जैसा पदार्थ इकट्ठा हो जाता है। पक्षियों को सांस लेने में बड़ी कठिनाई होती है। वे सुस्त और उदास हो जाते है और बार-बार सिर हिलाते है। वे खांसने और छिकने लगते है। उनका चेंहरा मुंह द्वारा सांस लेने के कारण सूज जाता है।
रोकथाम के उपाय -
1. बहुत अधिक पक्षी एकही स्थान पर न रखें।
2. हवा के आने जाने का अच्छा प्रंबध करें।
3. नमी ना होने दें।
4. जीवाणु रोधक दवा (एन्टीबायोटिक) पानी में घोलकर पक्षी को पिलावें।
5. पक्षियों का टीकाकरण समयानुसार करें।
3. कुक्कुटों में खुनी दस्त
                खूनी दस्त (काक्सीडियोसिस) लगने से विषेश कर तीन से छःसप्ताह के आयु वाले चुजें मर जाते है। रोग आंरभ होने पर चूजें सुस्त हो जाते है रोगी चूजें इक्टठे होकर चारों ओर चक्कर काटते फिरते है। उनके पंख मुड़ जाते है। पलके झपकने लगती है। भुख नही लगती और बार-बार खून के दस्त होते है। बीट के साथ खून आता है। अधिकांष पक्षी खूनी दस्त लगने के बाद एक सप्ताह से दस दिन के अन्दर मर जाते है।
पक्षियों को रोग कैसे लगता है -
                यह रोग परिजीवि से होता है जो पक्षी के खून में रहता है एवं बीट के साथ खूनी दस्त के रूप में बाहर आता है। जब अन्य पक्षी खूनी दस्त से दूशित पदार्थो (दाना, पानी) को खा लेते है तब उनको भी यह रोग हो जाता है। छः सप्ताह से ज्यादा उम्र वाले पक्षियों को इस बीमारी से कोई हानि नही होती है। परन्तु स्वस्थ चूजों (तीन-छः सप्ताह उम्र) में यह रोग उनके द्वारा फेल सकता है।रोग की रोकथाम -
1. मुर्गीघर एवं दड़बों को अच्छी प्रकार साफ सुथरा रखें।
2. दड़बों में पक्षियों की संख्या अधिक नही रखें।
3. हर रोज फर्ष पर बीट साफ रखें।
रोगी कुक्कुटों का इलाज -
                मुर्गियों के भोजन या पानी में सल्फामेजाथीन, सल्फाक्यूनाक्सलीन या सल्फाग्वानिडीन दवा देना चाहिए।

कुक्कुटों में रानीखेत बीमारी
                रानीखेत मुर्गीयों का एक भंयकर रोग है। और कभी-कभी इस रोग से सारी मुर्गियां मर जाती है, यह रोग सभी आयु की मुर्गियों पर आक्रमण करता है। इस रोग के कारण मुर्गि पालकों को विषेश कर बरसात में भारी हानि होती है।
लक्षण -जब चूजों पर इस रोग का मामुली आक्रमण होता है तब -
1. वे सुस्त और उनके पंख मुड़े दिखाई देते है, आॅखें बंद रखतें हैं, भूख नही लगती है।
2. जल्दी जल्दी सांस लेते है, और कभी-कभी सांस के साथ सीटी की आवाज निकलती है। मुंह से सांस लेते है।
3. ज्वार हो जाता है, प्यास बहुत लगती है, और पीले रंग के पानी जैसे दस्त लग जाते है।
4. चोंच से कफ निकालने के लिये अक्सर सिर हिलाते हुए दिखाई देते है।
                रोग के बढ़ने पर चूजें मरने लगते है इसके आक्रमण से जो चूजें बच जाते है उनके गरदन या टांगों को लकवा मार जाता है। मुर्गियां इस रोग से ठीक होने के बाद दिखने में तो ठीक लगती है। परन्तु आम तौर पर अण्डे नही देती है। कभी-कभी पक्षी की गरदन पीछे की ओर मुड़ जाती है।
                रोग की भंयकर अवस्था में चूजों में इस बीमारी के केवल कुछ ही लक्षण दिखाई देते है। ओर वे अचानक मर जाते है। परन्तु प्रोढ़ पक्षी कुछ देर से मरते है।
रोग का कारण -
                यह रोग एक प्रकार के विशाणु के कारण होता है जो आंखों से दिखाई नहीं देते है।रोग कैसे फैलता है - इस रोग के विशाणु मुर्गी षाला तक जंगली चिड़ीयों, कबूतरों और कौओं या उनकी देखभाल करने वाले व्यक्तियों के द्वारा आते है। उनके पानी और आहार में ये विशाणु प्रवेष कर जाते है। जब स्वस्थ पक्षी इस छुत लगे भोजन या पानी को खाते या पीते है तब यह उनको रोग लग जाता है। इस रोग से ठीक हूई मुर्गी भी इसके विशाणु स्वस्थ पक्षियों तक ले जा सकती है। झुंड में एक बार इस रोग के आरम्भ हो जाने पर रोगी पक्षियों के थुकबीट आदि में यह रोग स्वस्थ पक्षियों में तेजी से फेलता है।
रोकथाम कैसे करें -
                इस रोग से पक्षियों की रक्षा का एक मात्र तरीका रोक के रोकथाम के उपाय करना है, एक बार रोग आरंभ हो जाने पर कोई भी दवा इलाज नही कर सकती। समयानुसार रानीखेत का टीकाकरण चुजों एवं पक्षियों में कराकर निष्चित रूप से इस बीमारी की रोकथाम की जा सकती है।
5. कुक्कुटों में चेतक
                सभी उम्र की कुक्कुटों को चेचक रोग, सामान्यतः हो जाता है। यह रोग अक्सर गर्मी में होता है और इससे अनेक पक्षी मर जाते है, वे काफी कमजोर हो जाते है। ऐसे पक्षियों की बढ़वार ठीक नहीं होती और उनको अन्य रोग आसानी से लग जाते है। यद्यपि यह रोग सब आयु के पक्षियों को लगता है, फिर भी दड़बा घरों से हाल ही में निकाले गए आठ से बारह सप्ताह की आयु वाले चूजों को आसानी से लगता है। छोटे चूजों को दड़बा-घरों में भी चेचक रोग लग जाता है। इस रोग से एक बार स्वस्थ हुए पक्षियों को, सामान्यतः यह रोग दुबारा नही लगता।
                यह रोग एक प्रकार के जीवाणुओं के कारण होता है। एक बार आरम्भ हो जाने पर यह रोग बहुत तेजी से फैलता है।
चेचक रोग के परिणाम -
                चेचक रोग का आक्रमण होने पर मुर्गी का कलगी, चोंच, पलकों, सिर, टाॅगों, पर षरीर के ऐसे ही अन्य पंखहीन भागों पर छोटी, सूखी और भूरे रंग की फॅुसियां खाल से चिपकी रहती है और अन्त में गहरे रंग की हो जाती है। जब इस रोग का आक्रमण केवल पक्षी की खाल पर होता है, तब पक्षी की बढ़वार रूक जाती है और अण्डों का उत्पादन भी कम हो जाता है, परन्तु आमतौर पर पक्षी मरता नही है।
                परन्तु जब रोग का आक्रमण अधिक भयानक रूप से होता है, तब गले, मुॅह और आॅखों में हल्के पीले रंग की झिल्ली सी पड़ जाती है। गले और ष्वास नली में छोटी-छोटी फुुंसियां होने के कारण चूजों का दम घूटता है।जब आॅख पर आक्रमण होता है, तब पुतली सिर भी सूज जाता है। ऐसे सब पक्षी मर जाते है।
चेचक की रोकथाम कैसे करें -
                चेचक रोग के एक बार आरम्भ होने पर इसकी रोकथाम नहीं कर सकते। रोकथाम का एकमात्र उपाय अपने पक्षियों को चेचकरोधी टीका लगवाना है।
                चेचक को रोकने के दो किस्म के टीके मिलते है-पिजियन पाॅक्स वैक्सीन और फाउल पाॅक्स वैक्सीन । पिजियन पाॅक्स वैक्सीन से चूजे की सुरक्षा होती है और इसका असर लगभग केवल तीन मास तक रहता है। परन्तु फाउल पाॅक्स वैक्सीन से पक्षियों की इस रोग से आजीवन रक्षा होती है।
                फाउल पाॅक्स वैक्सीन काॅच की सील बन्द नलियों में सूखा मिलता है।
अपने पक्षियों के टीका गर्मियां षुरू होने से पहले ही लगवा दीजिए। टीका लगवाने के लिए अपने ग्राम सेवक या पषु चिकित्सा अधिकारीयों से सम्पर्क में रहें।
1. फाउल पाॅक्स वैक्सीन में ग्लिसरीन या नमक का पानी टीका लगाने के ठीक पहले ही मिलाएं।
2. चूजें से डेने के अन्दर कई बार सूई चुभो कर दवा को षरीर में प्रवेष कराइए।
3. दड़बे से दूर वृक्ष की छाया में पक्षियों को टीका लगाकर चूजों को धूप वाले बाड़े में अलग रखिएं, ताकि उनको दड़बें में छूत न लग जाएं।
4. टीका लगाते हुए पक्षियों को स्वयं न पकडियें। बची रह गयी वैक्सीन को जला दीजिए और दवा की खाली षीषी को सुरक्षित जगह में फेंक दीजिए।
5. टीका लगे चूजों से उसी दड़बे की अन्य मुर्गियों या चूजों को यह रोग लग सकता है। इसलिए जब आप यह देखें कि सब पक्षियों के एक ही समय में टीके नहीं लग सकते, तब दड़बे में टीका न लगाइए।
6. छः से आठ सप्ताह की आयु के चूजों के टीका लगाना सबसे अच्छा रहता है।
7. जब चेचक रोग का खतरा हो, तब एक महीने से कम आयु के सब चूजों और अण्डे देने वाले पक्षियों के यदि उनके पहले कोई टीका न लगा हो तो फिजियन पाॅक्स का टीका लगाइयें और कुछ समय बाद फाउल पाॅक्स का टीका लगाइयें।
8. गर्मी में पैदा हुए चूजें कमजोर होते है, उनको पहले पिजियन पाक्स का टीका लगाइयें और कुछ समय बाद फाउल पाॅक्स का टीका लगाइयें।कड़कनाथ कुक्कुटों की बीमारियों को रोकने के तरिके -
                बीमार पक्षी की पहचान यह है कि पक्षी सुस्त हो जाता है, भुख का अभाव, पंख नीचे को झुक जाते है तथा पक्षी एकांत में बैठना पसंद करता है।
1. बीमार पक्षी को षेश झुंड से पृथक तुरंत करें तथा बीमार एवं स्वस्थ पक्षीयों की देखभाल पृथक-पृथक व्यक्त् िकरें।
2. बीमार मरे हुए पक्षी को या जला दें या इतना गहरा गाड दें कि उसे कुत्ते इत्यादि न खोदनें पायें।
3. बीमार पक्षियों के प्रबंध में लगा व्यक्ति अपने हाथों को जिवाणु रहित करके ही स्वस्थ पक्षियोें का प्रबधंन करें।
4. दड़बे के सभी उपकरणों को भली भांति प्रकार साफ कर जिवाणु रहित कर लेना चाहिए।
5. पीने के पानी में थोड़ा पोटेषियम परमैगनेट मिलाकर पीने को देे।
6. किसी भी पक्षी के बीमार होते ही पषुओं के डाक्टर से सलाह अवष्य लें।


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