Tuesday, September 11, 2018

गाय- स्वस्थ्य प्रबंधन

स्वस्थ्य प्रबंधन 

आलेख एवं संकलन

डा. चन्दन कुमार, वैज्ञानिक (पशुपालन उत्पादन एवं प्रबंधन) एवं श्री दया राम चैहान (तकनीकी अधिकारी)

कृषि विज्ञान केन्द्र झाबुआ (राविसि कृषि विश्वविद्यालय ग्वालियर)


मल्क फीवर गाय व भैसों में पाई जाने वाली एक उपापचयी (मेटाबोलिक) बीमारी है । यह बीमारी प्रायःब्यांत से एक दो दिन पहले या ब्याने के पश्चात् 72 घंटे में होती है। यह प्रायः ज्यादा दुग्ध उत्पादन करने वाली गाय व भैंसो में होती है। पुराने (बृद्ध) पशुओं में इसकी प्रवलता अधिक होती हैअतः कहा जाता है कि यह वास्तव में कोई बीमारी नहीं बल्कि ब्यांत के पश्चात् खनिज लवणों  (मुख्यतः कैल्शियम) के असन्तुलन का परिणाम है फीवर यानि बुखार नाम से भ्रमित नहीं होना चाहिए, क्योंकि इसमें तो शारीरिक तापमान सामान्य से कम हो जाता है। यह स्पष्ट होना चाहिए कि सामान्यतः यह बीमारी ब्यांत के पश्चात् उत्पन्न होती है परन्तु  यह गर्भावस्था या दुध देने वाली गायों को कभी भी हो सकती है।

कारण 
मिल्क फीवर मुख्यतः शारीर के अन्दर रक्त में आयनिक कैल्शियम लवण की सांद्रता में कमी के कारण होता है। रक्त में  कैल्शियम का सामान्य स्तर 9.11उह ध्100 कस होता है, परन्तु जब यह स्तर 7उहध्100कस से नीचे गिर जाता है, तो मिल्क फीवर के लक्षण प्रकट होते है, रक्त में यह कमी निम्न कारणों से हो सकती है।
1. खीस के माध्यम से अत्यधिक (रक्त से 12 -13 गुना अधिक) कैल्शियम का शारीर से बाहर आना।
2. ब्यात के पश्चात कैल्शियम का खीस में निकाल जाने के कारण तथा हड्डीयों से कैल्शियम सोखने व आंत से कैल्शियमका अवशोषणके कारण, उस अनुपात में शरीर को कैल्शियम नही मिल पाता है जो शारीर को उचित मात्रा में कैल्शियम प्रदान कर सके जिसके फलस्वरूप यह लक्षण दिखाई देता है।
३. रक्त में कैल्शिटोनिन हार्मोन की अधिकता या पैराथार्मोन की कमी के करण (यही हार्मोन आंत तथा हड्डीयों से कैल्शियम को रक्त में इसकी सांद्रता बनाये रखने में मदद करता है।


लक्षण 
मिल्क फीवर के लक्षणों को मुख्यतः तीन अवस्थाओं (चरणों) में बाटा जा सकता है 
प्रथम चरण - ब्याने से पहले उत्तेजित अवस्था
सिर व पैर में अकडन आना
पशु द्दारा चारा - दाना कम खाना
बिमार पशु का सिर को इधर-उधर हिलाना 
पशु का जीभ बाहर लटका होना तथा दांतों का किटकीटाना
पिछले पैरों में अकडन के कारण पशु का गिरना
दूसरा चरण - गर्दन मोड़ कर बैठी हुई अवस्था
पशु अपनी गर्दन को पेट की ओर मोड़करसुस्त सा बैठना (पशु लेटे रहने की बजाय सीने बाले भाग के सहारे बैठा रहता है
नथुनों के बीच का भाग (मजल) सुखा होना 
सामान्य शारीरिक तापमान से शारीर का तापमान में कमी आना, विशेषकर पैरों  का ठंडा  पड़ जाना है
आखों का शुष्क होना तथा पुतलियों का फैलना 
गोबर व पेशाब का बंद होना 
शिराओं के दाब में कमी आना तथा जुगलर शिरा को मुश्किल से महसूस कर पाना
रूमेन की गति काफी कम होने से कब्ज जैसी समस्या का उत्पन्न होना 
तीसरा चरण - लेटे रहने की अवस्था 
पशु सीने के सहारे बैठने की बजाय बेहोसी के हालत में सोया रहना ऽ
शारीरिक तापमान में कमी आना 
लेटे रहने के करण अफरा जैसी समस्या का होना

पहचान 
यह बीमारी तीसरी - चैथी या इससे अधिक ब्यात वाली गाय व भैसों में अधिक होती है, बिशेषकर उन गाय व भैसों में जिनकी दुध देने की क्षमता अधिक होती है । 
हाल ही में ब्यांत हुई अधिक दुग्ध उत्पादन करने वाली गाय या भैंसें छाती के बल बैठना या पार्श्व अवस्ता में सो जाना एक बिशेष लक्षण है । इसके अतिरिक्त शारीरिक तापमान में कमी आना ।
रक्त में कैल्शियम की सान्द्रता का कम होना। कैल्शियम उपचार करने पर बीमारी में सुधार आना भी बताता है कि बीमारी मिल्क फीवर ही है।
उपचार
मिल्क फीवर के इलाज के लिए योग्य पशुचिकित्सक से सलाह लें ।
कैल्शियम का इंजेक्शनबाजार में माइफेक्स, इन्टाकाल और फैलबोराल आदि नामों से उपलब्ध है
अधिक कैल्शियम ह्रदय को खतरा पैदा करता है द्य अतः कैल्शियम चढाने में बहुत ही सावधानी बरतनी चाहिए जैसे कि -
क) कैल्शियम की बोतल को शारीरिक तापमान जितना गर्म करना चाहिए ।
ख) पशु को कैल्शियम का इंजेक्शनसिरा के अंदर धीरे धीरे  देना चाहिए ।
ग) हृदय की धड़कन का बार बार परिक्षण करना चाहिए ।
शिरा के अंदर तेज गति से कैल्शियम देने से या अधिक मात्रा में देने से या रिएक्शन हो जाय तो निम्न उपचार करना चाहिए ।   
क) हृदय गति बढ जाने पर 10ः मैग्निसियम सल्फेट 100 से 400 मिलीलीटर की दर से अंदर देना चाहिए ।
ख) हृदय गति घट जाने पर एट्रोपिन सलफेट का इंजेक्शन देना चाहिए ।



रोकथाम 
पशु का उपचार जितना जल्दी हो सके करना चाहिए, क्योंकि देरी होने से यदि एक बार पशु जमीन पर लेट जाता है तो मांसपेसियो के अपंग होने का खतरा रहता है ।
इस लिए पशु के निचे भूसा, बोरी या पुराने गद्दों का सहारा देकर रखना चाहिए यदि पशु लेटा हुआ है, तो उपचार चलने तक पशु को सहारा देकर बैठाना चाहिए ताकि स्थिति और अधिक न बिगड़े ।
ब्यांत के समय से 1-2 सप्ताह पहले अधिक कैल्शियम दाना मिश्रण में नही देना चाहिए ।
ब्यांत के एक सप्ताह पहले विटामिन क्3 का एन्जेशन देना चाहिए । ब्यांत के 2-3 दिन तक पूरा दुध नहीं निकालना चाहिए। अच्छे आवास की ब्यवस्था करनी चाहिए तथा जानवरों को ठंड से बचाना चाहिए । ब्यांत के कुछ सप्ताह पहले से पशु को अमोनियम क्लोराइड (25ग्राम)दाना मिश्रण के साथ मिलाकर खिलाना चाहिए तथा ब्यांत तक इसे बढ़ाकर 100 ग्राम प्रतिदिन कर देना चाहिए ।
मिल्क फीवर ग्रस्त पशु को कैल्शियम देने से क्या एकाएक बदलाव आता है 
पशु को डकारें आती है ।
फ्लेंक (रिब) की मांसपेशियां गति करने लगती है ।
हृदय की आवाज बढ़ जाती है ।
सुखे मजल गीला होने लगता है ।
चिकनी म्युकस में लिपटी हुई गोबर आता है ।
रूमेन का गति बढ़ने से पशु जुगाली करने लगता है ।
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