Tuesday, September 11, 2018

गाय- देखभाल

गाय व भैस को गर्मी में लाने के उपाय एवं पहचान

आलेख एवं संकलन

डा. चन्दन कुमार, वैज्ञानिक (पशुपालन उत्पादन एवं प्रबंधन) एवं श्री दया राम चैहान (तकनीकी अधिकारी)

कृषि विज्ञान केन्द्र झाबुआ (राविसि कृषि विश्वविद्यालय ग्वालियर)

 
         समुचित पशुधन उत्पादन तथा डेयरी व्यवसाय से अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है, कि दुग्ध उत्पादन के साथ साथ पशु प्रजनन प्रदर्शन भी श्रेष्ट हो, ताकि पशु समय समय पर गर्मी में आ सकें और गर्भित हो सकें। अतः उचित प्रबंधन व प्रजनन सुधार कार्यक्रमों के द्वारा प्रजनन क्षमता में इतनी वृध्दि की जानी चाहिए कि वे किफायती साबित हो सकें। सम्भवतः सभी पशुपालकों का मुख्य उद्देश्य होता है कि उनके मादा पशु उचित समय पर गर्मी में आयें तथा सही समय पर गाभिन हो ताकि दो ब्यांतों के बीच का अंतराल सही बना रहेे तथा दुग्ध उत्पादन में निरंतरता बनी रहे। इसके लिए यह आवश्यक है कि  हमारे पशुपालक भाइयों को अपने पशुओं की वैज्ञानिक तरीके अपनाकर अपने पशुओं का उचित पालन पोषण करना चाहिए जिसमे उचित पोषण, उचित स्वास्थ्य एवं प्रजनन प्रबंधन आदि मुख्य है। सामान्यतः गाय-भैस अपनी योवन अवस्था के बाद हर 20 से 22 दिनो के अन्तराल पर गर्मी में आती रहती है। अधिकांश मादाओं में एक निश्चित अवधि के बाद बार-बार शारीरिक परिवर्तन होते हैं जो उनमें जनन हार्मोनों द्वारा उत्पन्न होते हैं। इसे जनसामान्य की भाषा में पशु का गरम होना या गर्मी में आना कहा जाता है। और इस चक्र केा मद चक्र (एस्ट्रस साइकिल) कहते हैं। मद चक्र लैंगिक रूप से वयस्क मादाओं में चलता रहता है जब तक कि वे गर्भ धारण न कर लें। दूसरी भाषा में कहें तो मदचक्र मादा पशु की वह अवस्था है, जिसमें वे नर पशुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है तथा सम्भोग के लिए तैयार रहती है। गाय व  भैसों में गर्मी के लक्षण जैसे जोर जोर से रभाना, एक दुसरे के ऊपर चढना, बार बार पेशाव करना तथा एक सफेद लेसदार तरल पदार्थ योनि द्वार से निकलना, योनि के बाहरी भाग सूज जाना और लाल हो जाना इत्यादि प्रमुख लक्षण हैं। कई बार खासकर बडे, व्यवसायक डेयरी फार्म व गर्मी के मौसम में  सम्भव नहीं हो पाता है। गायों की अपेक्षा भैसों में गर्मी के लक्षण उतने खुलकर नहीं दिखाई देते है क्योकि भैसों में शांत उत्तेजना (साइलेंट हीट) पाई जाती है, इसलिए इसे मौन प्रजनक भी कहते है। भैस में मदकाल संबंधी समस्या प्रजनन समस्याओं में से एक मुख्य समस्या है जिसने कि कुल भैसों मैं से 30 से 40 प्रतिशत भैसों को प्रभावित किया हुआ है। भैसों में मदकाल संबंधी समस्या के कारण देश में प्रति वर्ष 19     से 20 मिलियन टन दूध की कमी हो रही है। ऋतुचक्र मुख्यतः गायों में रात  को देखा जाता है तथा कभी  कभी पता भी नहीं चल पता है, अतः इसकी पहचान बहुत ही आवश्यक हो जाती है जब हम लोग कृत्रिम    गर्भधारण करवाते है। औसत मद काल कि पहचान किसी भी फार्म में 55-60 प्रतिशत ही हो पाता है। अतः यह आवश्यक हो जाता है की गायों को प्रत्येक दिन कम से कम दो तीन बार 20 मिनट की आवधि  के लिय देखा जाये, परन्तु यह मुमकिन नहीं हो पता है। अतः यदि किसान (पशुपालक) एक बधिया (टीजर) सांड  को गाय भैसों के समूह में छोड़ दिया जाये तो गर्मी में आने वाले पशुओं के लक्षण आसानी से पहचाने जा सकते है। यदि सही समय पर गाय भैस का गर्मी में  आने का लक्षण न पता लग पाये व  समय पर गर्भाधान न हो पाये  तो इनके पहले ब्यांत की आयु भी अधिक हो जायेगी। इसी तरह एक ब्यांत से दूसरे ब्यांत के बीच समय का अन्तर भी बढ जायेगा। इसके परिणामस्वरूप गाय भैस काफी समय तक बिना दूध दिए खड़ी रहेगी तथा इसके खिलाने पिलाने का खर्चा भी बढ जायेगा। उसके पूरे जीवन काल में बच्चों की संख्या तथा कुल दूध उत्पादन की मात्रा भी कम हो जाएगी जिससे पशुपालक को बहुत आर्थिक नुकसान हो जाता है अतः मद अवस्था की पहचान बहुत जरूरी है। इससे गभिन दर 20-25 प्रतिशत तक बढ जाती है।

आमतौर पर देखने में आया है कि देशी गाय व भैस अधिक उम्र की होने या ब्याने के अधिक समय के बाद भी गर्मी के लक्षण नहीं दिखाती। कुछ गायें तथा भैसें ब्याने के पश्चात काई महीने बाद गर्मी में आती है, जबकि ब्याने के 45 से 60 दिन के अन्दर गर्मी में आ जानी चाहिए। पशु का गर्मी में न आना या देरी से गर्मी में आना या बहुत से पशुओं में मद चक्र का पूर्ण अभाव होना आदि के कई कारण हो सकते है जैसे पशु की उम्र, शरीर भार, संतुलित आहार की कमी, हरे चारे की कमी, बीमारी, मौसम, शरीर में  हारमोनों का असंतुलन, गर्मी के लक्षणों का ठीक से न पहचानना, अनुचित प्रबंधन आदि। इसमें संतुलित आहार तथा प्रजनन प्रबंधन उचित नहीं होना इस समस्या के मुख्य कारण है। इन पशुओं में करीब 30 प्रतिशत तो ऐसे होते है जिनकी जाँच करने पर बच्चेदानी एवं अन्य जनन अंग ठीक तो पाये जाते है परन्तु इनकी डिब ग्रंथियां कार्यशील नहीं होती है। 

इन समस्याओं की रोगथाम के लिए मुख्यतः उपाय निम्नलिखित है -

आहार प्रबंधन - हमारे देश में पशुओं में गर्मी के लक्षण नहीं दिखाना या देरी से दिखाना व बांझपन होना इन सब का सबसे बड़ा कारण है कुपोषण अर्थात पशुओं के दाने चारे में शर्करा या कार्बोहाइडेट प्रोटीन ए वसा खनिज लवण तथा विटामिनों का असन्तुलित मात्रा होने के कारण ही कुपोषण जन्य रोग पैदा होते है। अर्थात पशु के आहार मैं पोषक तत्वों की कमी या पोषक तत्वों की उचित मात्रा तथा सही अनुपात में न होना मुख्य समस्या है। पशु आहार में प्रोटीन, खनिज पदार्थ और विटामिन ए व  इ आदि कि कमी होने से प्रजनन संबंधी समस्यायें हो जाती है। इसलिए पशुपालक अपने पशुओं की बचपन से ही उचित देखभाल करे इसके लिए पशुपालक अपनी बछडी या कटडी को बचपन से ही संतुलित आहार जिसमें उचित मात्रा में प्रोटीन वं वसा के साथ साथ अवश्यक खनिज पदार्थ भी हों इसके लिए पशुपालक को (जिसमें एक दल वाले तथा दो दल वाले अर्थात दलहनी (फली वाले ) अदलहनी (गैर फली वाले ) हरे चारे का मिश्रण और दाने तथा उचित मात्रा में नमक हो अवश्य खिलाना चाहिए। 

दाना मिश्रण- पशु के आहार में सुखे चारे तथा हरे चारे अवश्यक होना चाहिए केवल हरा चारा या केवल सूखा चारा नहीं देना चाहिए, कम से कम दो -तिहाई सूखा चारा तथा एक तिहाई हरा चारा होना चाहिए। जहॉ तक दाना की बात है तो कोई एक प्रकार का दाना या खली नही देना चाहिऐ बल्कि इनका मिश्रण होना चाहिए। यदि एक कुन्टल दाना तैयार करना है तो 20-30 किग्रा खली, 30-40 किग्रा चोकर, 15-25 किग्रा दलहनी फसलों के उपजात, 15-25 किग्रा अदलहनी फसलों के उत्पाद एवं 1 किग्रा नमक लेकर भली भाति मिश्रित कर लेना चाहिए। प्रौढ़ पशुओं को निर्वाह हेतु ऐसे मिश्रित दाने की 1 किलो मात्रा एवं अन्य कार्यो जैसे प्रजनन एवं गर्भ हेतु 1-1.50 किग्रा एवं दूध उत्पादन हेतु ढ़ाई से तीन किग्रा दूध पर 1 किग्रा दाना निर्वाहक आहार के अतिरिक्त देना चाहिए। परन्तु फिर भी इनमें से कुछ सूक्ष्म खनिज लवणों की कमी हो सकती है जिसके लिए खिनज मिश्रण का पाउडर जो बाजार में विभिन्न व्यापारिक नामों में उपलब्ध है, जिसको 30-40 ग्राम प्रतिदिन प्रति प्रौढ़ पशु को देना चाहिए। पशुओं के आहार में खिलाये जाने वाले विभिन्न चारो दानों, जैसे हड्डियों एवं मांस के चूर्ण में 15 से 64 प्रतिशत, दो दालिय सूखी घासों में 7 से 11 प्रतिशत, खली एवं भूसी में 5-7 प्रतिशत, भूसा में 4-5 प्रतिशत, आनाज में 1.5-3.0 प्रतिशत एवं हरे चारे तथा साइलेज में 1 से 3 प्रतिशत खनिज लवण पायें जाते हैं। अत किसानों आपने पशुओं को संतुलित आहार जिसमें 2 प्रतिशत खनिज लवन मिश्रण (मिनरल मिक्चर) मिला हो अवश्य देना चाहिये और जिन पशुओं को संतुलित आहार न दिया जाता हो उनको सनी में प्रतिदिन प्रति गाय भैस 40-50 ग्राम खनिज लवन मिश्रण एवं 30-40 ग्राम नमक अवश्य दिया जाना चाहिये, जिससे उनके पशु स्वस्थ्य, दुग्ध, उत्पादन में वृद्धि एवं समय से गर्मी पर आकर किसानों को आर्थिक लाभ पहुंचा सकते है।

पशु आहार में इन खनिज लवणों की कमी की अवस्था में बछडियों या कटडियों को 20 से 30 ग्राम तथा गाय भैस को 40 से 50 ग्राम प्रति दिन की दर से खनिज मिश्रण खिलाना चाहिए। 

प्रजनन प्रबंधन - पशु प्रसव के उपरान्त जेर का निष्कासन (जेर डालना) प्रायः 8-12 घंटे के बीच नहीं हो तो तुरन्त योग्य पशु चिकित्सक द्वारा सलाह व जाँच करवानी चाहिए। अगर पशु के जेर का निष्कासन चिकित्सक के हाथों दवारा होता है तो पशु की बच्चेदानी में एन्टीवायोटिक दवा रखवा देनी चाहिए ताकि पशु के जननांगों में किसी प्रकार का संक्रमण होनो की संभावना न हो और पशु समय पर गर्मी के लक्षण दिखा सके। 

जिन पशुओं की बच्चेदानी एवं अन्य अंग ठीक होते है किन्तु इनकी डिब ग्रंथियां कार्यशील नहीं होती। ऐसे पशुओं की डिब ग्रंथियों की यदि एक या दो बार पशुचिकित्सक से हल्की मालिश करवाई जाये तथा बच्चेदानी के मंुह पर लुगोल-आयोडीन का लेप लगवाया जाये तो इनकी डिब ग्रंथियां पुनः कार्यरत हो सकती है।  

मदकाल तालमेल या मदकाल समक्रमण विधि-  मदचक्र का एक कोशलपूर्ण फेरबदल है, जिसमें सभी मादा जानवर एक साथ मदकाल में सकते है। राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान में भैसों पर एक नवीन मदकाल समक्रमण प्रोटोकाल विकसित की गई थी, इसके लिए तीन इंजेक्शन जी एन आर एच (ळदत्भ्), पी जी एफ2 एल्फा (च्ळथ्2α), इस्ट्राडिओल बेनजुएट की आवश्यकता होती है। 

प्रक्रिया - इस प्रोटोकोल में, भैसों को (जो समय पर या लम्बे समय तक मद में न आना / बार बार ग्यभिन करवाने पर भी गर्भित न हो) एक जी एन आर एच एनालाग (रेसेप्टाल, 10 माइक्रो ग्राम अन्तः पेशीय) तथा उसके बाद पी जी एफ२ एल्फ (च्ळथ्2α) (ल्यूटालाइस, 25 मिली ग्राम अन्तः पेशीय) तथा इस्ट्राडिओल बेनजुएट (1 मिली ग्राम) का इंजेक्शन क्रमशः 7 वें 8 वें दिन लगाए जाते है। सभी पशुओं को इस्ट्राडिओल बेनजुएट इंजेक्शन लगाने के बाद 48 वें घंटे तथा 60 घंटे पर दो बार कृत्रिम गर्भाधान किया जाता है। 

 

मदकाल तालमेल के लाभ 

1.       मदकाल तालमेल से सभी मादा जानवर एक साथ गर्मी मे आ जाती है जिससे ऋतुकाल की पहचान जल्दी हो जाती है ।

2.       यह कृत्रिम गर्भधारण के लिए बहुत ही लाभकारी सिध्द होता है।

3.       व्यवसायिक डेयरी फार्म में जानवरों का उचित प्रबंधन आसान हो जाता है तथा मजदूरी के साथ साथ समय की भी बचत हो जाती है। इस विधि से जानवरों की आयु तथा उत्पादन क्षमता बढ जाती है। मदकाल तालमेल के द्वारा हम लोग गायों के ब्यात मध्यकाल को कम कर सकते है तथा ज्यादा से ज्यादा दूध प्राप्त कर सकते है तथा खाने पीने का खर्चा भी कम कर सकते है। यदि पशुपालक गायों के हीट (ऋतुकाल) को नहीं पहचान पाता है तो उन गायों को दुबारा गर्मी में आने में  21 दिन का समय लगता है जिससे पशुपालक को बिना दूध उत्पादन के ही खान पान का खर्चा उठाना पडता है।

4.       इस विधि को आपनाने से कृत्रिम गर्भधारण सुलभ हो जाता है तथा प्रजनन काल को भी अपने अनुसार आगे पीछे कर सकते है।

5.       मदकाल तालमेल तथा कृत्रिम गर्भधारण के द्वारा गायों की आनुवशिक क्षमता को भी बढाया जा सकता है।

6.       इस विधि से एक तरह या एक सामान (रंग, वजन, प्रकार) बछडा या बछडी प्राप्त किया जा सकता है तथा बछडें की कार्य क्षमता तथा वजन को बढाया जा सकता है।

7.       मदकाल तालमेल के द्वारा ऋतुकाल की पहचान की दर 75 प्रतिशत तक तथा गर्भधारण की दर 65 प्रतिशत तक की जा सकती है 

इनके अलावा पशुपालक को गर्मी के लक्षणों का पता लगाने व उचित प्रबंध करने में अधिक ध्यान देना चाहिए। गर्मी के मौसम में अधिक तापमान होने के कारण प्रजनन क्षमता कम हो जाती है जिसके कारण मुख्यतः भैसों में मद अवस्था तथा मद के लक्षण में भी कमी आ जाती है। इसलिए पशुपालक को गर्मी के मौसम में गर्मी से बचने के उपाय करने चाहिए तथा उचित प्रबंधन करना चाहिए ताकि अपने दुधारू पशुओं से अधिक से अधिक लाभ ले सके।

260 दिनों में

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