Tuesday, September 11, 2018

मुर्गी- आवास व्यवस्था


कड़कनाथ कुक्कुट पालन हेतु मौसम अनुसार प्रबंधन -
1. वर्षा के मौसम में प्रबंधन -
                हमारे देष में बरसात हमेषा जून से सितम्बर माह तक रहती है। इस मौसम में बीमारियाॅ बड़ी आसानी से फेलती है, क्योंकि इस मौसम में नमी बनी रहती है और सूर्य की रोषनी कुक्कट फाॅर्म में कम ही आ पाती है बरसात के दिनों में सबसे अधिक परेषानी ई.कोलाई नामक बीमारी से होती है और इन बीमारियों का मुख्य श्रोत कुंआ या नल होता है इससे बचने के लिए हमेषा डिस्इफेक्टेन्ट दवाई जैसे ब्लीचिंग पावडर 6-10ग्राम 1000 ली.पानी का उपयोग करना चाहिए।
1. पानी के टेंक को हमेषा साफ रखना चाहिए, महिने में कम से कम एक बार चूने से पुताई करनी चाहिए।
2. मुर्गी के दाने में एसीडिफाइर्स का उपयोग करना चाहिए।
3. मुर्गी आवास को हमेषा साफ-सुथरा रखना चाहिए जिससे मक्खियों का प्रवेष न हो सके।
4. वर्शा के दिनों में दूसरी बड़ी समस्या फंगस (फंफुद) की होती है जो कि बड़ी तीव्रता से मुर्गी के दाने में फेलती है।
5. यदि मुर्गी दाने में थोड़ी सी नमी आ जाती है तो इसमें फुुंद बड़ी त्रीवता से फेल जाती है।
6. इससे बचने के लिए हमें निम्न उपाय करने चाहिए -
                1. अच्छे एवं ताजे आहार का प्रयोग करना चाहिए।
                2.टाॅक्सिन वाईन्डर दवा आहार में आवष्यक रूप से देनी चाहिए।
                3.आहार का स्टाॅक लकड़ी के तख्ते पर करना चाहिए एवं दीवाल से एक     इंच की दूरी पर रखना चाहिए, एवं स्आक आहार को हमेषा सूर्य का          प्रकाष मिलता रहना चाहिए।
                4.कुक्कट आहार हेतु जो भी कच्चा माल खरीदना हो वह सूखा होना चाहिए ।
5. यदि दाने (आहार) में फुुंद आ गई है तो ऐसे आहार में ढेले बनने लगते है, इस आहार को हमें मुर्गियां को नही देना चाहिए, इसके लिए आहार को तेज धूप में सुखाकर ढेलों को फोड़ देना चाहिए इस सूखे हुए आहार में टाॅक्सिन वाईन्डर दवा, काॅपर सल्फेट माइक्रोसार्व मिलाकर मुर्गियों को देना चाहिए।
6. यदि मुर्गियों ने फुंुद युक्त आहार खा लिया हो तो इस स्थिति में मुर्गियों पतली बीट करने लगती है क्योंकि फंफुद मुगियों के यकृत (लीवर) को खराब कर देती है, ऐसी स्थिति में हमें मुर्गिया के पीने के पानी में लीवर टोनिक दवाई देना चाहिए एवं टाॅक्सिन वाईन्डर दवा का उपयोग करना चाहिए।
7. वर्शा के दिनोें में मुर्गियों में निम्न बीमारियाॅ अक्सर देखी जाती है -
 जैसे - ई.कोलाई, डर्माटाईटिस, नेक्रेटिक, एनट्राईटिस, हिपेटाइटिस, काक्सीडियोसिस एवं फंगस टाॅक्सिसिटी इत्यादि।
2. शीतकालीन मौसम में कड़कनाथ कुक्कुट का आवास का प्रबंधन -
मुर्गी आवास की सफाई हेतु -
1. पुराना बुरादा, पुराने बोरे, पुराना आहार एवं पुराने खराब पर्दे इत्यादि अलग कर देना चाहिए या जला देना चाहिए।
2. वर्शा का पानी यदि आवास के आसपास इक्कठा हो तो ऐसे पानी को निकाल देना चाहिए और उस जगह पर ब्लीचिंग पावडर या चूना का बुरकावा कर देना चाहिए।
3. फार्म के चारों तरफ उगी घास, झाड़, पेड़ आदि को नश्ट कर देना चाहिए।
4.दाना गोदाम की सफाई करनी चाहिए एवं काॅपर सल्फेट युक्त चूने के घोल से पुताई कर देनी चाहिए ऐसा करने से फफंुद का प्रवेष भी ब्लीचिंग पावडर से कर लेना चाहिए।
5. कुंआ, दिवार आदि की सफाई भी ब्लीचिंग पावडर से कर लेना चाहिए।
श्ज्ञीतकालीन मौसम में दाने एवं पानी की खपत -
                षीतकालीन मौसम में दाने की खपत बढ़ जाती है यदि दाने की खपत बढ़ जाती है तो इसका मतलब है कि मुर्गियों में किसी बीमारी का प्रकोप चल रहा है। षीतकालीन मौसम में मुर्गिया के पास दाना हर समय उपलब्ध रहना चाहिए।
                षीतकालीन मौसम में पानी की खपत बहुत ही कम हो जाती है क्योंकि इस मौसम में पानी हमेषा ठंडा ही बना रहता है इसलिए कड़कनाथ इसे कम मात्रा मंे पी पाते है। इस स्थिति से बचने के लिए मुर्गियां को बार-बार षुद्ध ताजा पानी बदलकर देते रहना चाहिए।
ठंड के दिनों में मुर्गि आवास को गरम रखने के लिए कुक्कुट पालक को पहले से सावधान हो जाना चाहिए क्योंकि जब तापमान 10॰ब से कम हो जाता है तब आवास के षीषे से ओस की बूंद टपकती है इससे बचने के लिए कुक्कुट पालक को मजबुत ब्रुडिंग कराना तो आवष्यक है ही साथ ही मुर्गी आवास के उपर पैरा या बोरे, फट्टी आदि बिछा देना चाहिए एवं साइड के पर्दे मोटे बोरे के लगाना चाहिए, ताकि वे ठंडी हवा के प्रभाव को रोक सकें।
3. गर्मी के मौसम में प्रबंधन -
गर्मी के दिनों में निम्नलिखित समस्या प्रभावित करती है -
1. गर्मी की अधिकता के कारण दाने की खपत में कमी ।
2. दाने की खपत कम होने के कारण उत्पादन में कमी।
3. हीट स्ट्रोट (गरमी) के कारण मुर्गीयों का मर जाना।
4. मुर्गीयों का वजन कम होना।
                गर्मी के दिनों में मुर्गी आवास एंक बंद संदुकनुमा हो जाता है, जिसके उपर गर्म छत, दीवाल, गर्म हवायें एवं पर्दे से बंद खिड़कियां ऐसी स्थिति में आवास के अंदर इतनी भयानक गर्मी होती है कि मुर्गीयां इस गर्मी को सहने में असमर्थ रहती है कड़कनाथ पालक को इससे निपटना बहुत मुष्किल पडता है इसके लिए कड़कनाथ पालक को निम्न उपाय करना चाहिए -
1. परदों को पूरा बंद नही करना चाहिए, परदों को इतना बंद करें कि मुर्गी आवास मंे मुर्गीयों को सीधे लू न लगे।
2. परदा बंद करने का उदेष्य सिर्फ इतना होना चाहिए कि पक्षियों को लू से बचाया जा सके एवं ठंडी हवा का प्रवाह बना रहें।
3. यदि आप मुर्गी आवास के अंदर हो और आप के वातावरण में आराम महसूस कर रहें हो तो यह वातावरण मुगीयों के लिए अनुकुल है।
4. मुर्गीयों में गर्मी का प्रभाव सुबह 11 बजे से रात 9-10बजे तक अधिक पड़ता है एवं दाना खाने के बाद गर्मी का असर और बढ़ जाता है।
5. पानी गर्मी के दिनों में ठंडा मिलना चाहिए, हो सके तो दिन के हर पानी में इलेक्ट्राल का उपयोग करना चाहिए।
6. गर्मी के मौसम में दिन के समय दाना कम व पानी ज्यादा पिलाना चाहिए।
7. बोरे के पर्दो को पानी से गीला करते रहना चाहिए।
अण्डादेय मुर्गीयों जो कि पिंजड़ों में है को स्पे्र की सहायता से गीला करते रहना चाहिए एवं मुर्गी आवास के उपर षीट में पैरा बिछाकर स्प्रिकलर से गीला करते रहना चाहिए।
9. मुर्गी आवास के अंदर पंखे या एग्जास्ट अवष्य लगाना चाहिए।
10.रात में देर तक व सुबह जल्दी दाना देना चाहिए।
11.मुर्गी प्यासी नहीं रहनी चाहिए एवं ठंड़ा पानी उपयोग में लाना चाहिए।
12.दोपहर के वक्त मुर्गीयों को दाना नही देना चाहिए।
कड़कनाथ कुक्कुट आवास की खिड़कीयों में पर्दे लगाने का तरीका -
                जैसा कि हम जानते है कि कोई भी आवास हो चाहे वह जानवर का, पक्षी का या आदमी का आवास में यदि स्वस्थ हवा एवं सूर्य की रोषनी आती है तो वह आवास सबसे अच्छा माना जाता है।
                सूर्य की रोषनी हवा एवं बरसात के पानी को मुर्गियों के आवास से नियंत्रित करने के लिए मुर्गी आवास को खिड़कियों में पर्दे लगाये जाते है।
1. पर्दो को हमेषा उपर से 1 फिट जगह छोड़कर लगाना चाहिए।
2. गर्मी के दिनांे में टाट या सूत के वोरे के पर्दो का उपयोग करना चाहिए।
3. बरसात एवं ठंड़ के मौसम में मुर्गी आवास की खिड़कियों को पर्दे से पूरी तरह ढक देता है जिससे अंदर दूशित वायु बनती है, बुरादा गीला होने लगता है और मुर्गियाॅ साॅस सबंधी बीमारियाॅ पैदा होने लगती है मुर्गियों के पेट में पानी भरने लगता है और मुर्गियों का मरना चालू हो जाता है इसलिए किसान को ठंड के दिनों में यह ध्यान रखना चाहिए कि मुर्गी आवास में षुद्ध हवा का आगमन हो एवं दूशित वायु बाहर निकलती रहे।
बीमारी के आगमन की रोकथाम/बचाव
                बायोसिक्यूरिटी ऐसे उपाय है जिसके माध्यम से पक्षियों में आने वाली बीमारियों से बचा जा सकता है अतः बाहरी पषु, पक्षी या इंसान जो अपने साथ बीमारी के कारक लाते है इनका मुर्गी आवास में प्रवेष रोकना चाहिए क्योंकि सही टीकाकरण, सही सफाई एवं बाहरी जीवित प्रायियों का उचित ध्यान रखना ही आने वाली बीमारियों को रोकने का प्रमुख कारक है।
1. बाहरी पषु, पक्षी आदि का कुक्कुट आवास में प्रवेष नही होने देना चाहिए।
2. मोटर, गाड़ी आदि बाहरी वाहनों का प्रवेष नहीं होने देना चाहिए।
3. बाहरी वाहन या ऐसा वाहन जो व्यवसाय से संबंध रखता हो ऐसे वाहनों को बिना डिस्इफेक्टेंट का छिड़काव किये कुक्कुट आवास में प्रवेष नही करना चाहिए।
4. बाहरी लोगों के कपड़े, जूते, मोजे आदि अलग रखकर उन्हें कुक्कुट आवास की पोषाक पहनाकर एवं डिस्इफेक्टेंट का छिड़काव करके प्रवेष की अनुमति देना चाहिए।
5. अलग-अलग मुर्गी आवास में अलग-अलग नौकरों की व्यवस्था करनी चाहिए।6. दवा वाले, दाने वाले, चूजे वाले एवं मुर्गा खरीदने वालों से मिलने का समय निष्चित होना चाहिए एवं मुर्गो के आवास से दूर कार्यालय में मिलना चाहिए।
7. मुर्गी पालन हमेषा साथ पालने और एक साथ बेचने वाली पद्धति से करना चाहिए, ताकि बीमारी संक्रमण से बचाव हो सकें।
8. आवास से तैयार माल की बिक्री हो जाने के पष्चात् करीब दो सप्ताह तक आवास में पुनः चूजा पालन नही करना चाहिए।
9. आवास में लगे लोहे की खिड़की, दरवाजों एवं दीवाल के कोनों को फयूमीगेसन या फलेगमन से निर्जमीकृत अति आवष्यक होता है।
10. मुर्गी आवास में पानी की टंकी, पानी के पाईप, पानी पीने के बर्तनों की सफाई बहुत अच्छे करना चाहिए।
11.मरी हुई मुर्गियों को कुक्कुट आवास के आसपास नही फेंकना चाहिए इनको जलाना चाहिए या गहरे गढडे़ में दफन कर देना चाहिए।
12.मुर्गियों के पिलाने वाला पानी स्वच्छ होना चाहिए एवं षुद्धता हेतु क्लोरीनीकरण या ब्लीचिंग पावडर का उपयोग करना चाहिए।
13.आवास के मुख्य द्वार पर कीटनाषक का घोल बनाकर रखना चाहिए, ताकि जब कोई बाहरी लोग आते है, तो इस घोल में पैर डुबाकर अंदर प्रवेष कर सकते है।
14. मुख्य मार्ग पर एवं आवास के आसपास चूने का बुरकाव करना चाहिए।
कड़कनाथ चूजों में जगह की आवष्यकता का विवरण -
                उम्र              जगह की आवष्यकता
1-10 दिन              3 चूजें/फीट
11-20 दिन              2 चूजें/फीट
21-32 दिन              1 चूजा/फीट
कड़कनाथ कुक्कुटों में दाना एवं पानी के बर्तनों की व्यवस्था -
                आटोमेटिक ड्रिकर या फीडर 100चूजों पर दो लगाना चाहिए। पुराने चद्दर के बने फीडर 100चूजों पर 2 लगाना चाहिए दाने एवं पानी के बर्तनों की उॅचाई मुर्गे के क्रापॅ या कंध की ऊॅचाई के बराबर होना चाहिए ताकि दाना खाने एवं पानी पीने में मुर्गे को असुविधा न हो। एवं दाना पानी खराब होने से बचा रहे यदि उॅचाई का ध्यान नही दिया गया तो मुर्गे आपस में नोंचना चालू कर देते है दाना खाते समय दाना गिराते ज्यादा है बैठकर दाना खाते है एवं वही बैठ जाते है और उठते नही जिससे दूसरे मुर्गे को खोने का मौका नही मिल पाता जिसका असर वजन पर पड़ता है।कड़कनाथ कुक्कुटों में वृद्धि मापने का तरीका -
                इसको एक समीकरण से नापते है जिसको फीड़ कनेक्षन रेस्यों ;थ्ब्त्द्ध नाम दिया गया है। जो दाना खाने से वजन में वृद्धि को प्रदर्षित करता है।
थ्ब्त्त्र कुल वजन खपत (कि.ग्रा.) /कुल मुर्गे का वजन (कि.ग्रा.)
                जैसे 120 दिन के मुर्गे ने 120 दिनों में कुल 4000 ग्राम या 4.00कि.ग्रा. दाना खाया एवं उसका वजन 120 दिनों में 1100ग्राम या 1.10 कि.ग्रा. आया तो इसका थ्ब्त् 4000ध्1100त्र 3ण्63 होगा जिसका मतलब है कि 3.63किलो दाना देने पर कड़कनाथ मुर्गे मंे 120 दिनों में 1.1किलो वजन आ जाता है।

अण्डादेय कड़कनाथ मुर्गीयों में प्रबंधन -
                अण्डादेय मुर्गियां वे कहलाती है जिन्हें केवल अण्डे उत्पादन के लिए पाला जाता है इनका वजन कम होता है कड़कनाथ मुर्गियों से प्रतिवर्श 70 से 80 अण्डे प्राप्त कर सकते है, जबकि व्याइट लेगहार्न प्रजाति की मुर्गि से प्रतिवर्श 320 अण्डे प्राप्त किये जा सकते है।
                अण्डादेय मुर्गियों को पालने की तीन अवस्थायें होती है।
1. चूजों का पालन        - 1 सप्ताह से 8सप्ताह तक
2. बाढ़ (ग्रोवर) पालन      - 9 सप्ताह से 18सप्ताह तक
3. लेयर (अण्डोत्पादन अवस्था)    - 19सप्ताह से 72 सप्ताह तक
चूजों का पालन:- इस अवस्था को बुड़िंग अवस्था कहते है। इन चूजों को चिक स्टार्टर मेस दिया जाता है जिससे 2750किलो कैलोरी उर्जा एवं 20 पसे 21 प्रतिषत प्रोटीन, 1 प्रतिषत कैल्षियम और 0.45प्रतिषत फास्फोरस की मात्रा होती है चिक स्टार्टर मेस में दाना लगभग 7 से 8 सप्ताह तक चूजों को दिया जाता है इस अवस्था में चूजों का वजन लगभग 450ग्राम के आसपास हो जाता है।
बढ़ (ग्रोवर) पालन का समय -बू्रडिंग के बाद एवं अण्डा उत्पादन के पूर्व का समय बाढ़ (ग्रोवर) का समय कहलाता है ये दोनों अवस्थायें अण्डोत्पादन को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण योगदान करती है इस पर ही भविश्य में अण्डादेय मुर्गियों की अण्डोत्पादन क्षमता पूर्ण निर्भर करती है। बाढ़ (ग्रोवर) अवस्था में ग्रोवर मेस दाना दिया जाता है जिसमें 2600किलो कैलोरी उर्जा, 17-18 प्रतिषत प्रोटीन, 1 प्रतिषत कैल्षियम और 0.4 प्रतिषत फास्फोरस होता है।
लेयर अवस्था - जैसे की मुर्गियों में अण्डा उत्पादन षुरू हो जाता है तब इनको लेयर मेस दाना दिया जाता है जिसमें 2500किलो कैलोरी उर्जा, 18 प्रतिषत प्रोटीन, 3.5 प्रतिषत कैल्षियम और 0.45 प्रतिषत फास्फोरस होता है।विभिन्न सप्ताहों में अण्डों का उत्पादन -
                                सप्ताह           अण्डोत्पादन प्रतिषत
                                20                                           10प्रतिषत
                                26                                           97प्रतिषत
                                50                                           90प्रतिषत
                                60                                           85प्रतिषत
                                72                                           80-85प्रतिषत
                एक अण्डादेय मुर्गी की अण्डोत्पादन की अवस्था में 42 किलो आहार की खपत हो जाती है।
अण्डादेय कड़कनाथ मुर्गियों का सप्ताहवार प्रबंधन -
प्रथम सप्ताह -
1. ब्रुडर का तापमान 90॰ थ् होना चाहिए।
2. गुड़ या षक्कर या इलेक्ट्रोलाईसस आदि पानी में देना चाहिए।
3. विटामीन, एण्टीबायोटिक दवायें देना चाहिए।
4. मक्के का दलिया पेपर के उपर बुरकना चाहिए एवं धीरे-धीरे प्लेट, टेª,एग टेª या फीडर लगाना चाहिए।
5. चूजों को आरामदेय वातावरण में पालना चाहिए।
6. कमजोर सुस्त चूजों को प्रथक ब्रुडर में पालना चाहिए।
7. पहले दो दिन चैबीस घन्टे प्रकाष देना चाहिए।
8. गम्बेरो टीकाकरण, तीसरे दिन आॅख में ड्रापर कर सहायता से देना चाहिए।
9. सातवें दिन लसोटा एफ-1 आई ड्राप से देना चाहिए।
दूसरा सप्ताह -
1. बू्रडर का तापमान 85॰ थ् से 90॰ थ् कर देना चाहिये।
2. बू्रडर गार्ड एवं ब्रूडर एरिया बढ़ा देना चाहिए बू्रडर की उॅचाई बढ़ा देना चाहिए।
3. पानी एवं दाने के बर्तन प्रति हजार चूजों 20/20 की मात्रा में आवष्यक रूप से होना चाहिए।
4. 7 से 10 दिन में टचिंग डीविकिंग (चोंच काटना) करना चाहिए इसके बाद 3 से 5 दिन तक विटामीन पीने के पानी में देना चाहिए।
5. देखना चाहिए चूजों की बढ़त सामान्य है कि नही।
6. 14 वें दिन गम्बेरों इन्टरमीडियेट पानी में एवं 11/12 दिन इन्फेक्षियस ब्रोन्काइटिस टीकाकरण करना चाहिए।
7. 16-22घण्टे तक प्रकाष देना चाहिए।तीसरा सप्ताह -
1. बू्रडर का तापमान 88 थ् से 85 थ् होना चाहिये।
2. बू्रडर एरिया बढ़ा देना चाहिए यदि गर्मी के दिन हो तो पूरे षेड का उपयोग करना चाहिए।
3. 14-16घण्टे तक प्रकाष देना चाहिए।
4. षारीरिक वजन 140ग्राम होना चाहिए।
5. मल की जाॅच करना चाहिए एवं आवष्यक हो तो एन्अीकाक्सीडियल दवा देना चाहिए।
6. टीकाकरण 21वें दिन इन्फेक्षियस ब्रोन्काइटिस टीकाकरण आई ड्राप द्वारा करना चाहिए।
चैथा सप्ताह -
1. बू्रडर का तापमान 75 थ् से 80 थ् होना चाहिए।
2. बू्रडर एवं बू्रडर गार्ड पूर्णरूप से हटा देना चाहिए।
3. प्रति चूजा 0.5वर्ग फिट जगह देना चाहिए।
4. दाना बर्तनों में कम-कम एवं बार-बार डालना चाहिए।
5. 12 घण्टे प्रकाष देना चाहिए।
6. दाने एवं पानी के बर्तनों की सफाई बराबर ध्यान से रखनी चाहिए।
7. 24 वें दिन गम्बेरों में पानी देना चाहिए।
पांचवा सप्ताह -
1. बू्रडर का तापमान 65 थ् से 75 थ् होना चाहिए।
2. षारीरिक वजन 280ग्राम तक होना चाहिए।
3. 10-12घण्टे तक प्रकाष की आवष्यकता होती है जो कि सूर्य के प्रकाष से हो जाता है।
4. टीकाकरण रानी खेत बीमारी का लसोटा टीका 20 से 25दिनों में पीने के पानी के द्वारा करना चाहिए।
5. आहार की मात्रा, पानी तथा बुरादे के प्रबंधन पर विषेश ध्यान देना चाहिए।
छंटवा सप्ताह-
1. षारीरिक भार सामान्य रूप से प्राप्त हो चुका हो तो ग्रोवर  मेस दाना देना षुरू कर देना चाहिए।
2. षारीरिक भार390ग्राम होना चाहिए।
3. 11 से 12घण्टे प्रकाष देना चाहिए।
4. फाउॅल पोक्स का टीकाकरण करने चाहिए। जिसे मांस पेषियों में लगाते है।8. पंख सड़न (डर्माटाइटिस) बीमारी की जाॅच करें यदि यह बीमारी आ गई है तो तुरंत इसकी दवाई दें।
आंठवा सप्ताह -
1. षारीरिक भार 510ग्राम होना चाहिए।
2. सिर्फ दिन का प्रकाष देना चाहिए।
3. कमजोर एवं बीमार पक्षीयों को समूह से अलग रखना चाहिए।
4. 50-55दिन में लसोटा टीकाकरण पीने के पानी में देना चाहिए।
नौवां सप्ताह -
1. षारीरिक भार 510ग्राम होना चाहिए।
2. सिर्फ दिन का प्रकाष देना चाहिए।
दसवां सप्ताह -
1. षारीरिक भार 690ग्राम होना चाहिए।
2. सिर्फ दिन का प्रकाष देना चाहिए।
3. षारीरिक वजन एवं आकार के आधार पक्षीयों की श्रेणी बना लेना चाहिए।
ग्वारहवां सप्ताह -
1. षारीरिक भार 750ग्राम होना चाहिए।
2. 12 घण्टे तक प्रकाष देना चाहिए।
3. इन्फेक्षियष ब्रोन्काइटिस एवं रानीखेत (लसोटा) टीकाकरण पीने के पानी के द्वारा करना चाहिए।
बांरवा सप्ताह -
1. षारीरिक भार 830ग्राम होना चाहिए।
2. 12 घण्टे तक प्रकाष देना चाहिए।
3. क्रमिनाषक दवा देना चाहिए।
4. काक्सीडियोसिस की रोकथाम करना चाहिए इसके लिए एन्टीकाक्सीडियोसिस दवा देना चाहिए।
तैरहवां सप्ताह -
1. षारीरिक भार 910ग्राम होना चाहिए।
2. प्रकाष 12घण्टे।
3. रानीखेत बीमारी का आर-2 बी टीकाकरण मांसपेषियों द्वारा देना चाहिए।
4. विटामीन अतिरिक्त मात्रा में देना चाहिए।
चैदहवां सप्ताह -
1. षारीरिक भार 990ग्राम होना चाहिए।2. प्रकाष 12 घण्टे।
3. समूह में देखना चाहिए कि श्रेणीबद्ध करने के पष्चात् बढ़त में सामन्य वृद्धि हो रही है कि नही। 1. अंतिम बार चोंच काटने (डीविकिंग) की तैयारी करना चाहिए।
पंद्रहवा सप्ताह -
1. षारीरिक भार 1020ग्राम होना चाहिए।
2. प्रकाष 12घण्टे।
3. मुर्गीयां स्वस्थ है, षारीरिक भार सामान्य है या नही, आहार की खपत ठीक है या नही इन बातों की निरीक्षण कर लेना चाहिए।
4. फाउॅल पाक्स टीकाकरण मांसपेषियों में देना चाहिए।
16वां सप्ताह -
1. षारीरिक भार 1080ग्राम होना चाहिए।
2. प्रकाष 12घण्टे।
3. अंतिम बार चैंच काटना (डीविकिंग) करना एवं डीविकिंग के तनाव से बचाना व अतिरिक्त विटामीन की मात्रा देना चाहिए।
17वां सप्ताह -
1. षारीरिक भार 1120ग्राम होना चाहिए।
2. प्रकाष 12घण्टे।
3. मुर्गीयों के समुह से बांध या कुड़क मुर्गीयों को अलग कर देना चाहिए।
4. अण्डादेय मुर्गीयों को लेयर पिंजड़ों में स्ािानांतरित कर देना चाहिए, जिसकी चैड़ाई 15 इंच, गहराई 12 इंच एवं उॅचाई 18इंच होना चाहिए।
18वां सप्ताह -
1. षारीरिक भार 1180ग्राम होना चाहिए।
2. प्रकाष 11-12घण्टे।
3. क्रमीविहिनीकरण के लिये विडविंग दवा पानी में देना चाहिए।
4. प्री-लेयर मेस आहार देना चाहिए।
19 वां सप्ताह-
1. षारीरिक भार 1220ग्राम होना चाहिए।
2. प्रकाष 11-12घण्टे।
3. प्री-लेयर मेस दाना देना चाहिए।
4. यह देखना चाहिए कि अण्डों के उत्पादन में वृद्धि हो रही है कि नही।
20वां सप्ताह -
1. षारीरिक भार 1290ग्राम होेना चाहिए।2. प्रकाष 12 घण्टे 1घण्टा प्रति 5 प्रतिषत अण्डोत्पादन बढ़ने पर देना चाहिए।
3. प्री-लेयर मेस दाना 5 प्रतिषत उत्पादन होने पर चालू करना चाहिए।
4. प्रति सप्ताह वजन बढ़ाने वाली दवा एवं विटामीन देना चाहिए।
5. मुर्गीयां अपने जीवन काल का पहला अण्डा इसी सप्ताह में देेती है।
21वां सप्ताह -
1. प्रकाष प्रति सप्ताह 15 से 30 मिनिट तक बढ़ाये और 16.5 से 17 घण्टे तक ले जाना चाहिए।
2. संतुलित आहार उपयोग करना चाहिए।
3. सफाई का विषेश ध्यान देना चाहिए।
4. अण्डों का संचयन समय पर करते रहना चाहिए।
5. लसोटा टीकाकरण 8 से 12 सप्ताह के अंतराल में देते रहना चाहिए।
अण्डादेय कड़कनाथ मुर्गीयों में विद्युत (प्रकाष) कार्यक्रम -
                जब तक की मुर्गीयों का वजन 1300ग्राम न हो जाये तब तक दिन की बिजली में वृद्धि नही करना चाहिए। प्रकाष के माध्यम से मुर्गीयों की अण्डोत्पादन क्षमता को सुदृढ व परिपक्व बनाया जाता है। जिससे मुर्गीयां 19 वें सप्ताह से अण्डोत्पादन 36वें सप्ताह से मिलता है इसलिये प्रकाष में वृद्धि 20 वें सप्ताह से षुरू कर देना चाहिए।
आयु प्रतिदिन बिजली देने का समय -
1-2 दिन               22 घण्टे
3-4 दिन               20 घण्टे
5-6 दिन               18 घण्टे
7-14 दिन              16 घण्टे
15-21 दिन              14 घण्टे
22-28 दिन              12 घण्टे
29-133दिन             10-12घण्टे
20 सप्ताह              11.5 घण्टे
21 सप्ताह              12 घण्टे
22 सप्ताह              12.5 घण्टे
23 सप्ताह              13 घण्टे
23 से 28वें सप्ताह के बीच में    13़ आधे घण्टे बिजली में वृद्धि प्रति सप्ताह करना चाहिए जब तक प्रकाष समय 16-17  घण्टे न हो जायें।

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