Tuesday, September 11, 2018

मक्का- रोग एवं कीट प्रबंधन



पौध संरक्षण : -
                  कीट नियंत्रणः मक्का की फसल मे सफेद लट ( व्हाईट ग्रब ), तना छेदक इल्ली, मोयला या चेंपा (एफिड्स), भुट्टो को खाने वाली इल्लियां तथा फडका एंव सैन्य कीट अधिक नुकसान पहुचाते है।

सफेद लट ( व्हाईट ग्रब )- 
इसकी इल्लियां पौधो की जडो को खाकर नुकसान पहॅुचाती है।
रोकथाम- 
सफेद लट द्वारा ग्रसित खेतो के नियंत्रण हेतू कटाई के तुरंत बाद गहरी जुताई करना लाभदायक है। खेतो मे बिना सडी गोबर की खाद का प्रयोग न करे क्योकि यह सफेद लट के प्रकोप को बढाने मे सहायक होती है तथा प्रति हेक्टर 25 किग्रा थिमेट का खेत तैयार करते समय भुरकाव करे।

तना छेदक इल्ली- 
              यह मक्का एवं ज्वार का बहुत ही विनाशकारी कीट है जो इन फसलो के अलावा बाजरा, गन्ना, सूडान घास एवं दूसरी घासो पर पाया जाता है ।  इसकी इल्लियां शुरू मे कोमल पत्तो को खाकर तने मे घुस जाती है। जिससे पौधे के बीच का भाग सूख जाता है और डेड हार्ट बन जाता है। ग्रसित पौधो की सबसे आगे की पत्तियो को खोलकर देखने पर उनमे एक लाइन मे कई सारे छिद्र दिखाई देते है। इल्ली अवस्था को पार करके प्यूपा मे परिर्विर्तत हो जाती है और कटाई पश्चात मक्का के अवशेषो मे सुसुप्तावस्था मे चली जाती है। जब अगले वर्ष मक्के की फसल बोई जाती है तब यह सुसुप्तावस्था से निकलकर वयस्क मे परिवर्तित होकर नया जीवनचक्र शुरू करती है। पूर्ण विकसित इल्ली 20 से 25 मि.मी. लंबी मटमैले स्लेटी रंग की होती है। सिर काला एवं पृष्ट सतह पर भूरे रंग की आडी धारियां पायी जाती है। वयस्क पंतगा, पीला एवं स्लेटी रंग का होता है।
रोकथाम- 
इल्ली का प्रकोप करने हेतू अनुशंषित फसल चक्र अपनाये, बुवाई शीध्र सामान्यतः जुलाई के प्रथम सप्ताह तक करे, फसल के आशानुरूप उत्पादन हेतू बीज दर बढाकार उपयोग करे एवं बाद मे ग्रसित पौधो की आवश्यकतानुसार छटाई करे, प्रतिरोधकता प्रकोप सहने योग्य का उपयोग करे। तना छेदक इल्ली एवं शंखी फसल अवशेष (तना एवं ठूंठ) मे बने रहते है जो कि अगली फसल पर प्रकोप के स्त्रोत का कार्य करते है। अतः इनका प्रकोप रोकने हेतू कटाई के बाद फसल अवशेषो को नष्ट करे। रासायनिक कीटनाशको द्वारा नियंत्रण हेतू पौधो की छोटी अवस्था मे फोरेट 10 जी के 3 से 4 दाने पौधे की पोंगली मे डाले। पौधे की बडी अवस्था मे एन्डोसल्फान 35 ई.सी. 1.5 लीटर प्रति हैक्टर की दर से छिडकाव करे।

भुट्टो को खाने वाली इल्लियां- 
इल्ली भुट्टे के दाने को खाकर नुकसान पहुंचाती है।
रोकथाम- 
कारबोरिल 10 प्रतिशत डस्ट का 20 किलो प्रति हेक्टेर के हिसाब से भुरकाव करे। या एन्डोसल्फान 35 ई.सी. 1.5 लीटर प्रति हैक्टर की दर से छिडकाव करे।

मोयला या चेंपा (एफिड्स)- 
ये कीडे मांजरे निकलते समय रस चूसकर फसल को नुकसान पहुचाते है साथ ही परागकणे के झडने मे भी कारक होते है।
रोकथाम- 
इनके नियंत्रण हेतू डाइमिथोएट 30 ई.सी. 750 मि.ली. या इमिडाक्लोप्रिड 125 मिली प्रति हेक्टयर की दर से मांजरे निकलने की अवस्था मे छिडकाव करे।
फडका एंव सैन्य कीटः फडका एंव सैन्य कीट का भारी प्रकोप होने पर मिथाइल पैराथियान डस्ट (2 प्रतिशत) 25 किलो प्रति हेक्टयर की दर से भुरकाव करे।

रोग नियंत्रण :-
मक्का की फसल मे मुख्यतया पत्ती धब्बा, तुलासिता ( डाऊनी मिल्ड्यू), मेडिस एवं टरसिकम लीफ ब्लाइट, लीफ एवं शीत ब्लाइट तथा रस्ट का प्रकोप रहता है। इन रोगो की रोकथाम के लिए रोग सहनशील जातियो का चुनाव करना चाहिए, बुबाई जुलाई के प्रथम सप्ताह तक कर देनी चाहिए, बोनी से पूर्व बीज को फफूंद नाषक दवा से उपचारित करके बोना चाहिए। खडी फसल मे रोग का प्रकोप होने पर डाइथेन जेड -78 अथवा डाइथेन-45 दवा का 3 ग्राम प्रति लीटर की दर से छिडकाव करना चाहिए। डाऊनी मिल्ड्य रोग मे रोग के लक्षण दिखाई देते ही रोग ग्रस्त पौधे उखाड देने चाहिए।


Previous Post
Next Post