Tuesday, September 11, 2018

भैंस- देखभाल



पोषण प्रबंधन

आलेख एवं संकलन

डा. चन्दन कुमार, वैज्ञानिक (पशुपालन उत्पादन एवं प्रबंधन) एवं श्री दया राम चैहान (तकनीकी अधिकारी)

कृषि विज्ञान केन्द्र झाबुआ (राविसि कृषि विश्वविद्यालय ग्वालियर)

      सूखे के दौरान हरे चारे व प्राकृतिक घास की उपलब्धता में काफी कमी हो जाती है जो पशुओं के बाँझपन का मुख्य कारण है, इन पशुओं की प्रजनन क्षमता को पुनः स्थापित करने में लगभग 2-3 साल का समय लग जाता है। जिसके फलस्वरूप सामान्य रूप से रखरखाव हेतु परिपूरक आहार के रूप में  उपयोगी फसल अवशेषों की मांग भी हरे चारे की कमी के कारण बढ जाती है। पंजाब, हरियाणा व उतर प्रदेश में फसल अवशेषों की कमी को देखते हुए, धान के पुआल को जलाने की अनुमति नही दी जानी चाहिए। प्रतिवर्ष लगभग 20 लाख टन धान का पुआल जला दिया जाता है, जोकि पर्यावरण प्रदूषण की भारी समस्या पैदा करता है। 
इसको काटकर व जमा करके 4 प्रतिशत युरिया या सिरा का प्रयोग करके चारे की कमी वाले क्षेत्रों में पशुचारे के रूप में उपयोग में लिया जा सकता है। पंजाब हरियाणा व अन्य राज्यों में अतिरिक्त गेहूूं के भूसे को संरक्षित कर व मशीनरीं द्वारा इनके घनत्व को बढाकर प्रयोग में लिया जा सकता है इसके अलावा  जिन क्षेत्रों में मक्का व सरसों के चारे की उपलब्धता हो वहां से चारे की कमी वाले क्षेत्रों में इसको पहुंचाया जा सकता है। बारहमासी घासें जैसे अंजन घास (ब्मदबीतने बपसपंतपे) धामन घास (ब्मदबीतने ेमजपहमतने) नेपियर घास(¼ Dichianthium annulatum½  सेवन ( Lasiurus sindicus) इत्यादि घासें जो कि देश के विभिन्न सूखे से प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में अच्छी स्वभाविक रूप से पैदा होती है। उनको काटकर व सुखा जमा कर भण्डारण करके सूखे की स्थिति में प्रयोग किया जा सकता है। बारहमासी घास को अन्य फसलों के बीच में उगाया जा सकता है, क्योंकि इनके लिए कम पानी की आवश्यकता होती है जिसके फलस्वरूप फसल के सूख जाने की दशा में भी हरे चारे की आपूर्ति को सुनिश्चित किया जा सकता है।
गन्ने के ऊपरी हरे हिस्से व सूखे गन्ने की पत्तियों में प्रोटीन की मात्रा को बढाकर गन्ना उत्पादित क्षेत्रों से चारे की कमी वाले क्षेत्रों में भेजा जा सकता है। उन क्षेत्रों में जहां पानी की कमी के कारण गन्ने की फसल सूख गई हो वहां पूरी फसल को काटकर चारे के रूप में उपयोग किया जा सकता है अथवा गन्ने की खोई को भी यूरिया, अमोनिया द्वारा उपचारित करके शीरे के साथ मिलाकर सूखेग्रस्त क्षेत्रों में चारे के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
अंाशिक रूप से क्षतिग्रस्त गेहूँ का उपयोग उत्पादक जानवरों को बचाने के लिए किया जा सकता है, हालांकि घटिया गेहूँ जिसमें अफलाटाॅक्सिन (।सिंजवगपद) की मात्रा अधिक हो के प्रयोग से बचना चाहिए क्योकि इससे गर्भवती पशुओं में गर्भपात होने की संभावना होती है।
यूरिया मोलेसिस मिनरल ब्लाॅक चाट (न्डडठ) जैसे पूरक पोषकों के उत्पादन को बढ़ाने के प्रयास किये जाने चाहिए जो कि आसानी से स्थानांतरित किये जा सकते हैं तथा इस चाट को फसल अवशेषों जैसे गेहूं की तूडी या चावल का पुआल इत्यादि के साथ मिलाकर उनकी स्वादिष्टता तथा पाचन पदार्थ को बढ़ाया जा सकता है। इसके अलावा फसल अवशेषों का उपयोग कुल मिश्रित आहार (ज्डत्) के रूप में 10-15 प्रतिशत के स्तर पर किया जा सकता है।
कम्पलीट फीड ब्लाॅक आज कल बाजारों में आसानी से उपलब्ध है जिन्हें आसानी से एक जगह से दूसरी जगह पर स्थानांतरित किया जा सकता है। ऐसे किसान जो ज्यादा दूध देने वाली पशुओं को रखते हैं, इन फीड ब्लाॅक को खिलाकर हरे-चारे की कमी को पूरा कर सकते हैं तथा पशुओं की उत्पादन क्षमता को भी बनाये रख सकते हैं।
सरकार समाज के सामान्य हित में इन फीड ब्लाॅक की कुल लागत मूल्य मंे एक हिस्से को किसानों को अनुदान के रूप में देकर तथा सूखे ग्रस्त क्षेत्रों मे इनकी उपलब्धता को सुनिश्चित करके दूध तथा अन्य पशु उत्पाद को सस्ती दरों पर जनता को उपलब्ध करा सकते हैं।
वन क्षेत्रों में घास की चराई के साथ-साथ पेड़ों के पत्तों को खिलाने की संभावना का पता लगाया जा सकता है। पेड़ों की फली जैसे बबूल की फलियों को एकत्रित करके चारा स्त्रोत के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। इन फलियों में लगभग 13 प्रतिशत प्रोटीन व 30 प्रतिशत शरकरा (शक्कर) होती है इनके पत्तों को चारे के रूप में राशन का 10 प्रतिशत तक किया जाना चाहिए। उसी प्रकार अन्य पेड़ों की फली व पत्ते को जैसे स्मनबंमदं स्मनबवबमचींसंए ।पसंदजीने म्गबमेंए च्तवेवचपे ब्पदमतंतपंए ैवसअंकवतं च्तमतेपबंए ।बंसपं ैचचण्ए ।सइप्रपं ैचच इत्यादिे का उपयोग पूरक प्रोटीन के रूप में किया जा सकता है।
सब्जी व फलों के अवशेषों जैसे खाद्य पदार्थों को जिन्हें बाजार व कारखानों इत्यादि से एकत्रित किया जा सकता है, ये आमतौर पर उच्च नमी वाले खाद्य पदार्थ होते हैंए  इनको कारखानों के आसपास वाले किसानों को इसी रूप में वितरित कर सकते हैंए  अथवा इन्हें धूप में सूखाने के बाद कमी वाले क्षेत्रों में भेजा जा सकता है इन उप-उत्पादों की पोषक क्षमता सामान्यतः अच्छी होती है।
शराब के कारखानों मंे उपलब्ध अवशेषों से मिलने वाले उत्पादों में उच्च पोषक तत्व होते हैं, उन्हें एकत्रित करके दो या तीन दिनों के अन्दर दूध देने वाली पशुओं को खिलाया जा सकता है। इन उत्पादों को उचित तरीके से सूखा कर अलग-अलग जगहों पर पहुँचाया जा सकता हैए अथवा कारखानों की मदद से अच्छा उत्पाद तैयार करके सूखे ग्रस्त क्षेत्रों मंे भेज सकते हैं। तिलहनी व गैर-तिलहनी खल इत्यादि के निर्यात पर रोक लगाकर इनको सूखेग्रस्त क्षेत्रों में उपस्थित दुधारू पशुओं के उपयोग में लाया जाना चाहिए। दुधारू पशुओं के लिए चारा डिपो खाले जाने चाहिए तथा शुष्क व बेकार पशुओं के लिए पशु शिविरों की स्थापना की जानी चाहिए। ये शिविर पीने के पानी के स्त्रोत व  चारा भंडारण की सुविधा वाले क्षेत्रों के आस-पास होने चाहिए ताकि आस-पास केे देशों से चारा आयात करके एकत्रित किया जा सके।
देश के उन सिंचित राज्यों में जहाँ धान की खेती की जाती है, वहाँ कि भूमि का कुछ हिस्सों में कम पानी वाली मक्का व ज्वार की किस्मों को उपजा  सकते हैं तथा अतिरिक्त हरे चारे को साइलेज बनाकर चारे की कमी वाले क्षेत्रों में भेज सकते हैं। 

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