Thursday, August 25, 2022

प्याज

प्याज


 

बल्ब वर्गीय सब्जियों में प्याज का प्रमुख स्थान है। प्याज एक नकदी फसल है जिसमें विटामिन सी, फास्फोरस आदि पौश्टिक तत्व प्रचुर मात्रा में पये जाते है। इसका प्याज का उपयोग सलाद, सब्जी, अचार एवं मसाले के रूप में किया जाता है। गर्मी में लू लग जाने तथा गुर्दे की बीमारी मंे भी प्याज लाभदायक रहता है। भारत में रबी तथा खरीफ दोनों ऋतुओं में प्याज उगाया जा सकता है। भारत में प्याज की खेती महाराश्ट्र, गुजरात, उत्तरप्रदेष, उडीसा, कर्नाटक, तमिलनाडु, मध्यप्रदेष, आन्ध्रप्रदेष एवं बिहार में प्रमुखता से की जाती है।

जलवायु-
प्याज ठण्डे मौसम की फसल है। इसे सम जलवायु में अच्छी तरह से उगाया जा सकता है। प्याज की फसल के लिए बल्ब बनने के पूर्व 12.8 डिग्री सेल्सीयस एवं बल्ब के विकास हेतु 15.5 डिग्री सेल्सीयस तापक्रम उपयुक्त रहता ै। प्रारंभिक अवस्था में कम तापक्रम बोल्टिंग को बढ़ावा देता है। एवं तापक्रम में अचानक बढ़ोत्तरी से षीघ्र परिपक्वता आती है। जिससे बल्ब का आकार छोटा रह जाता है।

मृदा-
प्याज को सभी प्रकार की मृदाओं में उगाया जा सकता है, लेकिन कन्दीय फसल होने के कारण भुरभुरी तथा उत्तम जल निकास वाली बलुई दोमट मिट्टी सर्वोत्तम होती है।

उन्नत किस्में-
एग्रीफाउण्ड डार्क रेड-
इस किस्म के कंद गोल, गहरे लाल, 4-6 सेमी व्यास के होते है। यह किस्म रबी के लिए अनुषंसित की जाती है। फसल रोपाई के 90-95 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म खरीफ के लिए उपयुक्त होती है। इस किस्म की औसत पैदावार 300 क्विंटल प्रति हैक्टर होती है।

एग्रफाउण्ड लाइट रेट-
इस किस्म के  कंद गोल, हल्के लाल 4-6 सेमी व्यास के होते हैयह किस्म रबी के लिए अनुषंसित की जाती है। फसल रोपाई के 120-125 दिन में पककर तैयार हो जाती है इस किस्म की औसत पैदावार 300 क्विंटल प्रति हैक्टर है।
नाफेड 53- इस किस्म के कंद गोल, गहरे लाल रंग के होते है। फसल रोपाई के 90 दिन के बाद पककर तैयार हो जाती है। यह किस्म खरीफ के लिए अनुषंसित की जाती है। इसकी औसत पैदावार 250-300 क्विं. प्रति हैक्टर होती है।

पूसा रेड-
इस किस्म के कंद लाल मध्यम आकार के गोल होते है। फसल रोपाई के 140-145 दिन बाद पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म की भंडारण क्षमता अधिक होती है। इस किस्म रबी के लिए अनुषंसित है। इसकी औसत उपज 250-300 क्विं. प्रति हैक्टर है।

निराई-गुराई-
प्याज एक उथली जड़ वाली फसल है। अतः प्याज के खेत के में उथली निराई गुराई करना चाहिए। प्याज में खरपतवार नियंत्रण के लिए खरपतवारनाषियों का भी छिड़काव किया जा सकता है। रोपण के तुरंत बाद स्टाम्प (पेन्डीमिथालीन 30 ईसी) की 3 लीटर मात्रा प्रति हेक्टर की दर से छिड़काव करें।

 सिंचाई-
सिंचाई की संख्या भूमि और जलवायु के उॅपर निर्भर करती है। प्याज एक उथली जड़ वाली फसल है। इसकी जड़े भूमि की सतह से 8 सेमी की गहराई तक जाती है। प्याज में आवष्यकतानुसार प्रति सप्ताह हल्की सिचांई करना चाहिए। रबी फसल में 8-10 सिंचाई की आवष्यकता होती है अधिक नमी में पर्पल ब्लाॅच की संभावना बढ़ जाती है। खुदाई के 10 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर देनी चाहिए।

कीट एवं रोग प्रबंधन-
प्रमुख कीट- प्याज का थ्रिप्स (थिप्स टेबेकाई)
ये कीट छोटे आकार के होते है तथा इनका आक्रमण तापमान में वृद्धि के साथ तीव्रता से बढ़ता है और मार्च में अधिक स्पश्ट दिखाई देता है। इन कीटों द्वारा रस चूसने से पत्तियां कमजोर हो जाती है। तथा आक्रमण के स्थान पर सफेद चकते पड़ जाते है। इस कीट के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17ण्8 एस एल (0.3-0.5 मिली प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें आवष्यक हो तो 15 दिन बाद दोहरावे। नीम तेल 5 मिली को एक लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करें। अधिक प्रकोप की अवस्था में डायमिथोएट की 2 मिली मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करे।

 प्याज की मक्खी (हाईलिमिया एंटीकुआ)-
यह मक्खी प्याज की फसल का प्रमुख हानिकारक कीट है। जो अपने मैगट पौधों के भूमी के पास वाले भाग, आधारीय तने में पाये जाते है। मैगटों की संख्या 2-4 तक हो सकती है। इनसे भूमि के पास वाले तने का भाग सड़कर नश्ट हो जाने से पूरा पौधा सूख जाता है। कभी-कभी इस कीट द्वारा फसल को भारी मात्रा में क्षति होती है। इस कीट के नियंत्रण के लिए फसल की रोपाई से पूर्व, खेत की तैयारी करते समय नीम की खली-खाद 3-4 क्विंत्र प्रति एकड़ की दर से जुताई कर भूमि में मिलाए। खेत की तैयारी करतेे समय कीटनाषी क्लोरोपायईरिफाॅस 5 प्रतिषत  की दर से जुताई करते समय भूमि में मिलाए कीटनाषी क्वीनालफाॅस 2 मिली प्रति लीटर पानी की दस से आवष्यकतानुसार मात्रा का घोल तैयार कर षाम के समय 2-3 छिड़काव करे।

प्रमुख रोग-
 आर्द्रगलन (डैम्पिंग आफ)-
यह बीमारी प्रायः जहां प्याज की पौध उगायी जाती है, मिलती है व मुख्य रूप से पीथियम, फयूजेरियम तथा राइजाक्टोनिया कवकों द्वारा होती है। इस बीमारी का प्रकोप खरीफ मौसम में ज्यादा होता है। क्योंकि उस समय तापमान तथा आर्दता ज्यादा होते है। यह रोग दो अवस्थाओं में होता है। बीज में अंकुरण निकलने के तुरन्त बाद, उसमे सड़न रोग लग जाता है जब पौध जमीन से उपर आने से पहले ही मर जाती है। बीज अंकुरण के 10-15 दिन बाद जब पौध जमीन की सतह से उपर निकल आती है। तो इस रोग का प्रकोप दिखता है। पौध के जमीन की सतह लगे हुए स्थान पर सड़न दिखई देती है। और आगे पौध उसी सतह से गिरकर मर जाती है। इस रोग की रोकथाम के लि. बीज बोने के पूर्व पौधषाला की मिट्टी कार्बेन्डाजाईम 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल कर उपचारित करे। जड़ और जमीन को ट्राईकोडर्मा विरडी के घोल 5.0 ग्राम प्रति लीटर पानी से 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए। पानी का प्रयोग कम करना चाहिए। खरीफ मौसम में पौधषाला की क्यारियां जमीन की सतह से उठी हुई बनायें जिससे कि पानी इकट्ठा न हो।

पर्पल ब्लाच-
इस बीमारी का कारण आल्टरनेरिया पोरी नामक कवक (फफूंद) है। यह रोग प्याज की पत्तियों, तनों तथा बीज डंठलों पर लगती है। रोग ग्रस्त भाग पर सफेद भूरे रंग के धब्बे बनते हैं जिनका मध्य भाग बाद में बैंगनी रंग का हो जाता है। रोग के लक्षण के लगभग दो सप्ताह पष्चात इन बैंगनी धब्बों पर पृश्ठीय बीजाणुओं के बनने से ये काले रंग के दिखाई देते है। अनुकूल समय पर रोगग्रस्त पत्तियां झुलस जाती हैं तथा पत्ती और तने गिर जाते है। जिसके कारण कन्द और बीज नहीं बन पाते। इस रोग के नियंत्रण के लिए मेन्कोजेब 2-3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर 15 दिन के अंतराल से दोबार छिड़काव करें। पौध की रोपाई के 45 दिन बाद 0.25 प्रतिषत डाइथेन एम-45 या 0.2 प्रतिषत ब्लाइटाक्स-50 का चिपने वाली दवा मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। यदि बीमारी का प्रकोप ज्यादा हो तो छिड़काव 3-4 बार प्रत्येक 10-15 दिन के अंतराल पर करना चाहिए।

 काली फफूंदी-
यह एसपरजिलस नाइजर नामक कवक से होता है। इससे प्याज या लहसुन के बाहरी षल्कों में काले रंग के धब्बे बनते है और धीरे-धीरे सारा भाग काला हो जाता है। एवं कंद बिक्री योग्य नहीं रह जाते। बाहर के प्रभावित षल्क निकालने से कन्द खुले हो जाते है। और बाजार में कम भाव पर बिकते है। प्याज या लहसुन को अच्छी तरह से नही सुखने तथा भण्डारण में अधिक नमी के कारण इस रोग की समस्या बढ़ती है। रोग की रोकथाम कंदों को छाया में अच्छी तरह सुखाना चाहिए। भण्डारण हमेषा ठण्डे व षुश्क स्थानों पर करना चाहिए। भण्डारण से पूर्व भण्डार गृहों को अच्छी प्रकार से रसायनों द्वारा उपचारित कर लेना चाहिए।

खुदाई, उपज एवं भंडारण-
जब पत्तियों का उॅपरी भाग सूखने लगे तो उसे भूमि में गिरा देना चाहिए। जिससे प्याज के कंद अच्छी तरह से पक सके। कंद की खुदाई सावधानीपूर्वक अथवा कुदाली से करना चाहिए। खुदाई करते समय कन्द में चोट खरोंच नही लगनी चाहिए। प्याज की उन्नत किस्मों से औसतन 250-300 क्विं प्रति हेक्टर उपज प्राप्त की जा सकती है। प्याज का भण्डारण एक महत्वपूर्ण कार्य है।खुदाई करने के बाद कंदों को धूप में 7-10 दिन सुखाने के उपरांत हवादार कमरों में फैलाकर रखना चाहिए। भण्डारण के पूर्व कटे-फटे व रोगी कन्दों को अलग कर देना चाहिए। सामान्यतः 23.9 से 29.4 डिग्री सेन्टीग्रेड तापक्रम पर 5-6 माह तक प्याज को भण्डारित किया जा सकता है।

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